पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६५

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा समझा। लार्ड कर्जनने यह नहीं कहा था, कि भारतमें पक्का वायसराय रहनेका नियम जारी होना चाहिये, वरश्च दिल्लगीमें कहा था, कि इम कालिजके लड़के तीन बारकी जीतमें प्याला अपना कर लेते थे, अब तीन चार इसके लड़के भारतके वायसराय हुए हैं, इससे यह पद उनके लिये पक्का होजाना चाहिये और तीन बार वह विलायतके प्रधान मंत्री हो चुके हैं, इससे यह पद भी उनके लिये पक्का होजाना चाहिये अर्थात उन्होंने खुल्लम-खुल्ला नहीं कहा था, कि भारतकी लाटगिरीका पक्का पट्टा विलायतके ईटन कालिजके लड़कोंके नाम लिखदेना चाहिये, वरञ्च कोनेमें कहा था, कि ऐसा न होना चाहिये। जिस प्रकार किसी बालकको अपने माता पितासे कोई वस्तु मांगनेकी हिम्मत न हो और वह इधर उधर किमीसे चुपके चुपके उसे कहे, वही बात तो लार्ड कर्जनने की। खैर, खुले दहाने कहें या कोनेमें, इतना मालूम होगया, कि विद्याका भारीसे भारी दाम धन है। विद्याका परम-फल भारतका बडा लाट होजाना या विलायतका प्रधानमंत्री बन जाना है। अर्थात विद्या, धनके बदलेमें बिक जाती है अथवा सोने और जवाहिरातमें जड़ित होकर मबकी आंखोंमें बड़ा बनना विद्याका फल है या हाथियोंका जुलूम निकालकर स्वयं आगे होना और सब राजा महाराजोंको हाथियोंपर चढ़ाकर अपने हाथोके पीछे पीछे चलाना विद्याका अधिकसे अधिक फल है ! पर क्या विद्याका सचमुच यही मूल्य है ? विद्वानकी ऊँचीसे ऊंची यही आकांक्षा है ? ____ हरबर्ट स्पेन्सरके विषयमें एक विलायती पत्रमें कई एक बातें छपी हैं। उनके पढ़नेसे मालूम होगा, कि विद्वान क्या चाहते हैं और उनका हृदय कैसा होता है। प्राप्ट एलेन नामका एक आदमीः पेन्सरका हमउमर था, उसने कई- एक बातें स्पेन्सरके विषयमें लिखी थीं। वह मर गया। मरते समय [ ४८ ]