पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६५१

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गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता एक समय वह भी था प्यारी जब तू आती हर्ष हास्य आमोद मौज आनन्द बढ़ाती । होते घर घर बन बन मङ्गलचार बधाई राव चावसे होती थी तेरी पहुनाई। ठौर ठौर पर गाये जाते गीत सुहाने दर दुर जाते तेरा तिवहार मनाने । कुछ दिन पहिले सारे बन उद्यान सुधरते सुन्दर सुन्दर कुञ्ज मनोहर ठांव संवरते । लड़की लड़के दौड़ दौड़ उपबनमें जात अच्छे अच्छे फल तोड़ते हार बनाते। क्यारी क्यारोमें फिर जाते मालिन माली चुन चुन सुन्दर फल बनाते कितनी डाली । ठांव ठाँव पर बिछती सुन्दर फटिक शिलाय आने वाले बैठ छबि निरखं सुख पायं । सखी देखने आतीं उनकी वह सुघराई एक दूसरीको देतीं सानन्द बधाई। सारी शोभा देख देखकर घरको फिरती कहके अपनी बात मुदित सखियोंको करतीं। कहती थीं प्रमुदित हो होके सब सुकुमारी आ आ प्यारी वसन्त सब मृतुओं में प्यारी । माघ सुदी पांचका शुभअवसर जब आता सचराचर संसार हर्ष पूरित हो जाता। मिल जाता था समाचार सबको पहिलेही [ ६३४ ]