पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६६९

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गुस-निबन्धावली स्फुट-कविता कोटि कष्ट सुखसों सहे जिहि बस अनगिनतिन हानि । कस न करौं तिहि प्रेमको नित प्रनति जोरि जुगपानि ।। बन्दौं तव मुखकमल मोहिं लखि नित्य विकासित । मो संग विद्या आछतहूं तुतराई भासित । लाल वत्स प्रिय पूत सुत नित लै लै मेरे नाम । सुधा सरिस रस बैनसों जो पूरित आठौं जाम ।। खेलत खेलत कबहु धाय तव गरै लपटतो। लरिकाई चञ्चलताई के खरो चमटतो। लटकि लटकि के आपही हौं सम्मुख जातो घूमि । बन्दौं सो श्रीमुख कमल जो लेतो मो मुख चूमि ।। (८) जब तब जो कछु बाल बुद्धि मेरीमें आयो । अनुचित उचित न जानि आयकै तुमहिं सुनायो । हंसि हंसि ताहू पै दिये उचित ज्वाब मोहि जान । बन्दौं अति श्रद्धा सहित सो मधुर मधुर मुसकान ।। बन्दों तुम्हरे तरुन अरुन पंकजदल लोचन । दयादृष्टि सों हेरि सहज सब सोच विमोचन । मेरे औगुन ५ कबहुं जिन करि न तनिक निगाह । सबहि दसा सब ठौरमें नित बकस्यो अमित उछाह । (१०) मोहिं मुरझान्यो देखि तुरत जलसों भरि आये। कहूं रुष्टहू, भये तहूं ममतासों छाये। [ ६५२ ]