पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६७४

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शोभा और श्रद्धा जबहिं कहेंगे तुम्हरे हितकी बात कहेंगे कछु तुमहीको देदंगे तुमसों कहा लंगे ? अहो ! खिले उपबनकी सोभा निरखन हारे ! यह गुच्छे फूलनके तुमने भले संवारे । पै याहीके हेत नाहिं यह जनम तिहारो यों अधीर बनिकै औरनको रूप निहारो। कहा भयो जो जोरे बहु फलनके तोरे अरु मीठे बहु भांति फलनके ढेर बटोरे । कछ ऐसो अपनोहू तो गुन रूप दिखाओ वा सोभापै रिझवारिनके चित्त रिझाओ । तुमहूंमें कछु लोगनके दिन या विधि बीते मरे भयो बहुकाल आजलों हैं पं जीते । (३) देखहु ध्यान लगाय चरित उनके अति निर्मल सुद्ध स्वच्छ निरलिप्त मनहु गङ्गाजीको जल । रहे सबन सों दूर काम सबहीके आये देस जाति पर भीर परी तहं आगे पाये। देखत हे बहु दोष लेत हे आंख छिपाई देखत हे अपराध किन्तु हे देत भुलाई । विद्या गुन बरसाय गये यों धराधाम पर जिमि सावनके मेघ खेत पर परहिं टूटकर । सब कछु लाये साथ किन्तु कछु साथ न लीयो भलो करन हमरो आये थे सो कर दीयो ।। [ ६५७ ] ४२