पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६७५

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गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता (४) जबलों जीये देस जातिकी करी भलाई याही एक धन्धेमें सारी आयु बिताई । मरे छोड़ गये नाम आपनो राम नाम सम अजर अमर अबिनासी उत्तमहू ते उत्तम अटल अचल गम्भीर प्रतिज्ञा पालन हारे वहुदरसी बहु विज्ञ बात के बड़े करारे। कैसे हे करकमल और कैसे मुख उनके ? कौन रहे वह तिनहि सिखावनहारे गुनके ? पूछौ इन पोथिन सों वह सब कथा पुरानी उनकी विद्या बुद्धि नहीं कछु इनसों छानी ॥ अहैं इनहिं कण्ठस्थ वाक्य उनके सब सुन्दर सब्द सब्द उनके इनके ओठनके ऊपर । मृदु इनको उपदेश मधुर इनकी प्रियबानी उचित आज्ञा सब इनकी अरु सीख सयानी । चोट कथनकी इनके हिय पे लगत करारी मातहुकी सीख सों सीख इनकी अति प्यारी। अरु वह इनके दृश्य सदा मन मोहनहारे बन उपबन उद्यान बाटिका हू तं प्यारे । अरु इनकी बतरावन सुनि सुनि कछू न चहिये यही होत जीमें निस दिन सुनते ही रहिये ।। सदा कमर बांधे सबकी सेवामें हाजर जबलों चाहो निकट राखि पुनि देहु बिदाकर । [ ६५८ ]