हंसी-दिल्लगी
विघ्नविनासन-वाहन भाई, अब चल सकत नहीं चतुराई ।
जैसो कियों सोही फल पाओ, मरि मरि प्लंगलोक कहं जाओ।
जीवित रहते बिल्ली खाती, अथवा चील झपट जाती ।
तासों मौत देख क्या डरना ? “उभय प्रकार दुहृदिम मरना।”
चले जाहु यमपुरको झटके, धांगड़की लाठीसों लटके ।
-हिन्दी बंगवासी, २३ मई १८९.८ ई०
मभ्य होली
ध्यान
जयति जयति श्रीगौरकृष्ण जय उन्नतिकारन।
जयति सभ्य अवतार जयति सभ्यता प्रचारन ।।
पुच्छ रहित जय नराकार जय जयति मुरलिकर ।
मोर पुच्छसंयुक्त जयति जय हैट शीशधर ।।
जय धम्मकम्म कर तिमिर हर करन जगत तालीममय ।
धनधान्य बुद्धि शोषन सदा श्रीबूट सहित गौराङ्ग जय ॥
प्रभु वचनम् ।
लियो हम शिक्षा हित अवतार।
जग उद्धार हेतु बपु धास्यो टेमस तीरथ पार ।।
या मुरलीके द्वार करत नित शिक्षामन्त्र प्रचार ।
सरबस लैके देत सभ्यता यह उद्देश्य हमार ।।
सुवल हमारे सभ्य माष्टर ऐनक चपकनदार ।
बने सुदामा लाटपादरी कर बिच डुग्गी धार ।।
सुनो हमारे सखा शिष्यगण है के सब हुशियार ।
निज पलुअनको नाच दिखाओ खूब करौ त्योहार ।।
मास्टर वचनम्
विद्या सीखो भाईरे, सब विद्या सिखो।
बाहर पढ़ो मद बच्चे सब घरके माह लुगाईरे ।।
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६९४
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