पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६९५

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गुप्त-निबन्धावली गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता खानपान व्यापार शिल्प सब जानो मूरखताईरे । कालिजसे बस ध्यान लगाओ येही परम बड़ाईरे ।। विद्याके गुण निरखन कारन चशमा लेहु चढ़ाईरे । सभ्य सुशिक्षा बिन पृथ्वी पर उन्नति कहीं न पाईरे ।। निज शिक्षाको देहु परीक्षा देखो होली आईरे। गौर महाप्रभुके सबूट चरननमें सीस नवाईरे ।। पादरी वचनम । लेहु सभ्यता भाई, तुम्हें हम देत बुलाई । तुम्हरे गले प्रेमकी डोरी हमने है बंधवाई । एक ओर उस्ताद मास्टर दुजे हम चटकाई ।। पकड़ दोऊने हलाई ।। सरल पन्थ ईश्वरके सुतको तुमको देत बताई । छोड़ि अंधेरो गहो उजेरो सब भ्रम भूल मिटाई ।। लेहु सूधो पथ धाई ।। लड़की बहू हमारी तुम्हरे अन्तःपुरमें जाई । देहिं मभ्यता बिना दाम नित, चितमों ध्यान लगाई। काममै नाहिं कचाई।। छोड़ो चाल पुरानी नाचो कूदो होली आई। पीओ प्रभुका प्रेम पियाला सब कलङ्क मिटि जाई ।। कहत डुगडुगी बजाई।। जोरुदास। अपना कोई नाही रे, बिन जोरू सिरताज जगतमें कोई नाहीरे। मात पिता निज सुख लगि जायो अपने सुखके भाई, एक जोरू ही संग चलेगी ऐसी शिक्षा पाई। [ ६७८ ]