पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६९७

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गुप्त-निबन्धावली स्फुट-कविता हिन्दू बिसकुट साबुन पोमेटम, तेल सफाचट औ अरबी गम | हम तुम जिनको करते प्यार, वह तसवीरें भेजो चार । दो या चार ताश हों वैसे, उस दिन तुम कहते थे जैसे। आपकी भेजी जो यह पाऊं, तो जीकी कुछ तपत बुझाऊं। कुरसी मेज है काटे खाती, नाविल पोथी नहीं सुहाती। तुम चाहे आओ मन आओ, यह सब चीजें झट भिजवाओ । जोगीड़ा । बाबाजी बचनम् हां मदाशिव गोरग्य जागे सदाशिव गोरख जागे -- लण्डन जागे पेरिम जागे अमरीका भी जागे ! एमा नाद करूं भारतमें मौता उठकर भागे ।। हां सदाशिव गोरख जागे --- मन्तर माझ जन्तर मारूं भूत ममान जगाऊं। मव भारतवालोंको अकिल चुटकी मार उड़ाऊं ।। सदाशिव गोरख जागे -- अङ्कड़ तोड़, ककड़ नोडं तोडं पत्थर रोड़। मारे वायू पकड़ बनाऊं बिना पूंछके घोड़ ।। सदासिव गोरख जागे- नाक फोड़ बाबूबच्चोंकी डालू कच्चा सूत । सबकी एक रकावी करदं तो जोगीका पूत ।। । मदाशिव गोरख जागे---- बीबीजी वचनम् हुई बाबाजी तेरी-सदा चरणोंकी चेरी। हे सन्यासी सदा उदासी सुनके तुम्हरी बानी। जीमें बमी तुम्हारी मूरत भूल गई कृस्तानी ।। [ ६८० ]/* परीक्षण हुआ नहीं */ /*अतिरिक्त श्रेणी हटाई गई*/