पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७०

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मंक्समूलर क्या भाव होता है, संसारसे उनका क्या वर्ताव होता है, यह म्पेन्मरकी जीवनीसे अनुभव करना चाहिये। -भारतमित्र ९९०४ई. मेक्समूलर विलायतमें मेक्समूलरका बड़ा नाम है । पृथिवीक ममस्त मभ्यदेशोंक || पढ़ लिखे लोगोंमें उनके नामका बहुत कुछ आदर है । भारतवर्षमें भी इनके नामको कम धूम नहीं है। केवल अंग्रेजी पढ़े हुए लोगोंमें ही नहीं ; इस देशके ब्राह्मण पण्डितोंमें भी मेक्समूलरके नामकी बहुत कुछ चर्चा है। हमारे ब्राह्मण पण्डित लोग अन्य देशोंके विद्वानोंकी बहुत कम खोज ग्ववर रग्वा करते हैं, परन्तु मेक्समूलरके नामको वह भी भली भांति जानते हैं। केवल जानते ही नहीं हैं, वरञ्च भारतवर्षके विद्वान पण्डितोंक प्रसादसेही कृस्तान प्रोफेसर मेक्समूलरका नाम “आचार्य मोक्षमूलर भट्ट" पड़ गया था। भारतवासियोंक हृदयमें मेक्समूलरका बड़ा आदर होनाही चाहिये, उनके प्रतापसे इस संस्कृतके देशमें संस्कृतकी कुछ अधिक चर्चा हुई तथा इम देशके असंस्कृत लोगोंके हृदयमें भी संस्कृतने कुछ कुछ जगह पाई। इस देशक अंगरेजी पढ़े हुए बावू, जो केवल अंगरेजीहीको लेकर मस्त थे, प्रोफेसर मेक्समूलरकी बदौलत कुछ कुछ संस्कृतकी तरफ झुके। वह संस्कृतक तलस्पर्शी पण्डित नहीं थे, तो भी भारतवासियोंके मन्मानाह थे, क्योंकि देवनागरी, और संस्कृतमें उनकी प्रगाढ़ अनुरक्ति थी। उस संस्कृतक नातेसेही भारनवासियों और भारतवर्षके साथ उनका प्रेम था। संस्कृतकी शिक्षामें मेक्समूलरने सारा जीवन बिता दिया, वे संस्कृत शास्त्रको सारवान समझते थे. इमीसे उसके प्रचारमें उन्होंने अपने आपको अर्पण कर दिया था। मेक्समूलर वेदकी पूजा नहीं करते थे, परन्तु सम्मान करते थे । वेदको