हंसी-दिल्लगी
नाचना गाना तो क्या करना न जाने वह हंसी।
प्रेम दिखलाती है कोनेमें बिठाकर घर-बसी ।।
घरके धन्ध काम सब उसहीसे चलते हैं सदा ।
और जीसे चाहती है वह सदा मेरा भला ।।
दुःख पड़ने पर नहीं उसके बिना निर्बाह है।
ऐसी खुशवक्तीमें पर उसकी नहीं कुछ चाह है।
चार दिनकी है जवानी घरमें है दौलत भरी।
जो न सुख लूटा तो फिर किस कामकी है जिन्दगी ।।
यत्नसे रखना इसे यह देह है अपना विचित्र |
बूट अंगरेजोंका छ छू के हुआ है यह पवित्र ।।
हां चल प्याला दमादम, रात जाती है चली।
गाड़ दो अब सुखके झंडे खोलदो दिलकी कली ।।
सूप हो चप हो कढ़ी हो कोरमा हो केक हो ।
आज बोतलबासिनीका खूबही अभिषेक हो ।।
जय सदा होवे तुम्हारी मात एकश* नन्दनी ।
बन्दना तेरी करगे अब सदा जगवन्दनी ।।
मात ढकढक-नादिनी जय शोकताप-निवारणी ।
लाल शोभा-धारिणी जय जयति भव-भयहारिणी ।।
जय महानीरे कि सिरपे काक जिसके ताज है ।
हर कोई मोहताज उस यकृत जननिका आज है ।।
है दया जिसपर तुम्हारी, भाग है उसका बड़ा ।
जय पतित पावनि रखो दिनरात शय्यापर पड़ा ।।
- एक्सा-शराज ।
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