गुप्त-निबन्धावली
स्फुट-कविता
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कव्वेने की, काली बीट, तिसमें निकला चूना इंट ।
चूने ईंटसे निकला हाल, उसमें निकला आटा दाल ।
आटे दालसे निकली रोटी, कोई पतली कोई मोटी ।
रोटी खाई छुटी अंघाई, गङ्गा किरिया रामदुहाई ।
तब बैठे पञ्चायत जोर, कहत कहानी होगई भोर ।
सेख मलीमने कही कहानी, चौमासे भर भया न पानी।
गेहूं भये सवा नौ सेर, यह देखो किसमतका फेर ।
बाबू कर मानको हानी, सूखे खेत पड़ा जिमि पानी ।
ठोकी जाय अदालत अर्जी, ऐसी क्या है रामकी मर्जी ?
क्यों नहिं वह करता छिड़काव, क्यों नहीं चलती मड़कपे नाव।
मम्मन करो गमपर जारी, काहे सूखी हैं मब क्यारी ।
रामचन्द्रजी आप न आये, करके एक वकील पठाये ।
कहै वकील मनोजी राय, ऊंट चढ़े को कुत्ता ग्वाय ।
अफरीका पर हुई चढ़ाई, बादल गये उधर ही भाई ।
वह सोना भरकर लावंगे, तब हम भी मेंह वरमावंगे।
भारत पर बरसेगी हुन, लग रही है मोनेकी धुन ।
यह देखो झण्डीकं रंग, सूखे मूसर में बजरंग ।।
पहला रंग
नाइन एक स्वर्गसे आई, उसने यह सब कथा सुनाई।
मारवाड़में पड़ा अकाल, सुनकर बाबू भये निहाल |
दौड़ गये नाऊके पास, नाऊके मन बहुत हुलाम ।
ताऊ कहै सुनोजी बाबू, तुम कैसे बन बैठे हाबू ?
लोग देसके भूखे मरें, उनके लिये कहो क्या करें ?
ताऊ कहे सुनो रे पूत, किन बहकायो छोरो ऊत ।
जल्दी घरके मूंद किवाड़, अपना अपना झोंको भाड़ ।
पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७१३
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