पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७२२

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हंसी-दिल्लगी बुराई न इसकी करो दुबदृ, बढ़ायेगी हरदम यही आवरू । पुरानी भी है वह तुम्हारे ही पास, उसे भी पहन लो रहो बेहिरास । करो शुक्रिया जी से सरकारका, कि उसने सिखाई है तुमको हया । -भारतमित्र, २८ मई १६०० ई० अंगोछेकी अब तुम फबन देखना, खुली धोतियोंका चलन देखना । वह सेन्दूर बालोंमें कैसी जुटी, किसी पार्क में या कि सुखी कुटी। गरज यह कि काया पलट हो गई, मेरी आबरू यकबयक खो गई। बड़े लाट साहव सताई हूं मैं, तेरे पास फरियाद लाई हूं मैं ।।