पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७३

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा हाथमें उसका भार सौंपा गया। तबसे मेक्समूलर आक्सफोर्डमें बस गये। अन्तको आक्सफोर्ड विश्व-विद्यालयके अध्यापक नियुक्त हुए। यहीं रह- कर मेक्समूलग्ने कोई ५५ वर्ष तक संस्कृतादि भाषाओंकी आलोचना की। संस्कृत साहित्यको इतिहास-रचना, वैदिक-माहित्यके उद्धार, बौद्ध-माहित्य- के प्रचार, हिन्दू-दर्शनकी आलोचना, धर्म-विज्ञान, भाषा-विज्ञान, मनो- विज्ञान आदि विभागोंमें उन्होंने जो कुछ मीमांसा की है, उसमें भ्रम होने पर भी उसका बहुत कुछ आदर हुआ है। उनके ऋग्वेदका प्रथम भाग मन १८४६ ई० में प्रकाशित हुआ. तभी से उनकी ख्याति भारतवषमें तथा अन्यत्र हुई । उन्होंने इतने ग्रन्थ रचे हैं, कि उनके वर्णन करनेमें एक पुस्तक बन मकती है। विभिन्न पचास प्रसिद्ध धर्मशास्त्रों का अनुवाद भी उन्होंने प्रकाशित किया। केम्ब्रिज, एडिनबरा, ग्लामगी आदिक विश्वविद्यालयोंमें वह समय समय पर वक्तता देते थे । वह सब वक्तृताए भी पुस्तकाकार छपी हैं । प्राचीन हिन्दु-शास्त्रोंका इतिहास नामकी एक प्रसिद्ध बड़ी पुस्तक भी उन्होंने लिखी । लिग्वने पढ़ने में उनका उत्तमाह एमा वढ़ा हुआ था कि ७. वर्षकी उमरमें भी दो और बड़ी किताव लिखीं, जिनमेंसे एक श्रीरामकृष्ण परमहंमकी जीवनी और उक्तियां हैं, दृमरी पदर्शनका इनिहाम । मेक्समूलर ७७ वर्षके होकर मरे। इम उमर तक उनका स्वास्थ्य अच्छा था, शरीरमें बल था। आजकलंक ममयमें लोग जितनी आयु पाते हैं, उसको देखिये ना मेक्समूलरने बहुत उमर पाई । उनकी सारी उमर विद्याकी चर्चा में बीती, मारी दुनियांक पढ़ लिख लोगोंमें उनकं नामका आदर है। वह विलायतहीमें रह, परन्तु संसार भरकं पढ़े लिखे लोगों घरोंमें उनका चित्र लटकता है। संसारमें कितनेही लोग धनसे आदर पाते हैं, कितनेही बलसे आदर पाते हैं, मेक्समूलरने विद्यासे वह आदर पाया जो धन और बलसे भी बहुत बढ़कर है । मेक्समूलरका हम कहां तक आदर करें। उन्होंने कृस्तान होकर संस्कृतका आदर किया, उनकी मारी