पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७३४

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हंसी-दिल्ली पर यह दुनिया तो है फानी, आप चले रह गई कहानी, छोड़ चले शाइस्ताखानी ! -भारतमित्र, सन १९०६ ई. पोलिटिकल होली टोरी जाव लिबरल आवं। होली है, भई होली है। भारतवासी खैर मनावं । होली है भई होली है। लिबरल जीते टोरी हारे । हुए माली सचिव हमारे । भारतमें तब बजे नकारे । होली है भई होली है। लिबरल दलकी हुई बहाली । खुशी हुए तब सब बंगाली। पीट ढोल बजावं ताली । होली है भई होली है। हुए माली पद पर पक । बराडरिकको पड़ गये धक्के । बंगालो समझे पौछक्क । होली है भई होली है। बंग भंगकी बात चलाई । काटनने तकरीर सुनाई। तब मुलीने तान लगाई। होली है भई होली है। बंगभंगका हमको गम है। तुमसे जरा नहीं वह कम है । पर अब उसमें नहिं कुछ दम है। होली है भई होली है । होना था सो हो गया भइया। अब न मचाओ तौबा दइया । घरको जाओ लेह बिलइया । होली है भई होली है। नहिं कोई लिबरल नहिं कोई टोरो । जो पर नालासोही मोरी : दोनोंका है पन्थ अघोरी । होली है भई होली है। अब भी समझो भारत भाई, तुम्हें तुम्हारी दशा जनाई । आप सहो जो सिर पर आई । होली है भई होली है। करते फुलर विदेशी बर्जन । सब गोरे करते हैं गर्जन । [ ७१७ ]