पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/७४१

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गुप्त-निबन्धावली 124403 स्फुट-कविता भला ऐसा सदमा सहा जाय क्योंकर ? बिचारीके सब दांत भी गिर पड़ थे। मगर कान दोनों तो साबित खड़े थे। खड़ी देखती है वह पड़िया बेचारी। धरी है योंही नांद सानीको सारी। पड़ी है कहीं टोकरी और खारी। वह रस्सी गलेकी रखी है संवारी । बता तो सही भैस तू अब कहां है ? तू लालाकी आंखोंसे अब क्यों निहां है ? न यों तेरे मरनेका हरगिज यकीं था। अभी तेरा मरनेका सिनही नहीं था। तेरे दूधका जिक्रही हर कहीं था। तेरा दूध मक्खन था या अंगबी था ? भला अब किस लिये अब कर हाय हू हू ? कि रोनेसे वापिस नहीं आयगी तू। कतए तारीख दोस्तकी मेरे भैम थी बीमार थं वह बेचारे सखत खादिमें भैस । देखते देखते यकायक हैफ फोड़कर सिर निकल गया दमे भैस । दिलने मुझसे कहा कि लिख अय “शाद" कतए तारीख और मातमे भैंस । दो दफे सिर पटकके हातिफने यं कहा “आह सदमये गमे भैंस ॥"* -अवश्य, २० सितम्बर १८८५ ई.

  • काोंके भीतर जो वाक्य हैं इसके फारसी अक्षरसि भैसके मरनेका सन्

१३०२ हिजरी निकलता है।