पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/९०

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शंख सादी कितनी ही बात हैं। उनसे मालूम होता है कि मादी बड़ाही चतुर और ममयको पहचाननेवाला था। कितनीही जगह उसने न्यायपरायणता और उदारता भी दिग्बाई है। पर मुमलमान मजहबकी उसे बड़ी तरफ- दारी थी। मुमलमान मजहबकी तारीफ करने तथा अन्यान्य मजहब- वालोंपर नफरत दिग्वानेमें मादीने किसी प्रकार कमी नहीं की। यही और ईमाई लोगोंपर कई जगह ताने उड़ाये हैं। हिन्दुओंको गाली देनेमें उमने ग्लव झूठ बोला है। इससे यह भी मालूम होता है कि उसकी किताबों में बहतमी बान मनघडन हैं। जान पड़ता है, उम ममय दुमरे मजहबवालोंपर झूठे इलजाम लगाकर गाली देना भी अच्छा ममत थे नथा हिन्द-धम और हिन्दुस्थानकी बाबत वह कुछ भी न जानते थे। यहां तक कि वह हिन्दुओंकी धम्म पुस्तकका नाम नक भी न जानते थे। केवल स्वयालहीसे हिन्दुओंकी कल्पित मूर्ति बनाकर गालियां दिया करते थे। किन्तु मादीका क्या दाप है ? इस समय मात मौ सालसे अधिक मुसलमानोंको इस देशमें आय हो चुक, तथापि वह अब तक शम्ब मादी- ही बने हुए हैं। अब भी करोड़ों मुसलमान नहीं जानते कि हिन्दुधम्म क्या है और हिन्दू क्या मानते हैं। आज भी संस्कृत ना क्या हिन्दी तकसे मुसलमानोंको घृणा है । देवनागरी अक्षरकी शकल देम्बकर भागत हैं। भगवान जाने यह दशा उनकी कवतक बनी रहेगी। ____कुछ हो, सादी कीर्तिमान पुरुप था । मंमाग्में कितनेही हुए, कितने होगये। शख मादी भी उनकी भांति अब पृथिवीपर नहीं है। न वह समयही बाकी है, जिसमें मादी था। पर उसकी “गुलिस्तान" अब भी हरी-भरी फूली-फली है । आज मात्रै छः सौ वर्ष बाद भी उसकी वाटिका- के फल वैसेही ताजा हैं और न जाने कबतक रहेंगे। मादी स्वयं कह गया है.