पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/९५

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा कृच किया । वहाँके फौजदारने उसके आनेकी ग्वबर सुन स्थानीय अंग्रेजी फैटरीको जबत करकं वहाँक कर्मचारियोंको कैद कर लिया। उमी समय ढाकवाली फैक्टरीक दो उच्च कर्मचारी भी वहाँव फौजदारक हुक्म- से पकड़ लिये गये । इन मब बातोंसे घबराकर कप्तान हीथने ढाकके हाकिमसे बातचीत शुरू की, जिसका सारांश यह था कि अंग्रेज मुगलोंको सहायता देकर अरकान विजय करा दंगे। ढाकक हाकिमने भी मालूम होता है यह बात म्वीकार करली, क्योंकि बातचीत करनेक बाद ही कमान हीथ चटगांवक मामने अपने जहाज़ लेकर पहुंचा । पर वहाँकी दृढ़ किलाबन्दीसे घबराकर उसने उक्त हाकिमको कुल हाल लिवकर अंग्रेजोंक सब कष्ट सुनाये। इस खतका इन्तजार किये बिना-. ही कमानने अब अरकानके गजाको अपने ढङ्ग पर लाकर मुग़लोंसे लड़ना चाहा । पर इसका कुछ उत्तर न आया । जिद्दी कमान इन बातोंसे घबराकर कम्पनीक कुल कर्मचारियों और व्यापारियों सहित मद्रासको चला गया। उधर औरंगजेबने यह सुनकर कुल अंग्रेजोंको बंगालसे निकाल देने और उनका मब माल जबत करनेकी आज्ञा दे दी। इस तरहस ५० वासे चलता हुआ अंग्रजो व्यापार शाइम्ताग्यांक शासनकालकं अन्तमें एक दम जड़से उग्वाड़ दिया गया। ___ शाइस्ताखां अब बूढ़ा होगया था। इसलिये उसने सन १६८६ ई० में बंगालकी सूबेदारीसे हाथ म्वींच लिया। बङ्ग-इतिहासके लेखक मि० माशमैन सी० आई० ई० लिखते हैं कि यद्यपि अंग्रेजों और अन्य यूरो- पियन जातियोंसे शाइस्ताखाँका बहुत कड़ा बर्ताव रहा, पर देशी प्रजा उसे बहुत चाहती थी। वही साहब कहते हैं कि उसके समयमें १) का ८ मन अनाज बिकता था। इस बातकी यादगारमें उसने ढाकेके नगर द्वार बनवाये और उनपर लिख दिया था कि जब तक कोई हाकिम ऐसा मस्ता अनाज न करदे, इस द्वारसे कभी न प्रवेश करे। -भारतमित्र १९०५ ई० [ ७८ ]