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गुप्त धन
 

किया और एक मोहरदार बन्द लिफ़ाफ़ा देकर गायब हो गया ? अक्षय बाबू ने लिफ़ाफ़ा खोला और उसकी अम्बरी महक से रूह फड़क उठी। खत का मज़मून यह था-~-

'मेरे प्यारे अक्षय बाबू, आप इस नाचीज़ के खत को पढ़कर बहुत हैरत में आएंगे, मगर मुझे आशा है कि आप मेरी इस ढिठाई को माफ़ करेंगे। आप के आचार- विचार, आपकी सुरुचि और आपके रहन-सहन की तारीफ़े सुन-सुनकर मेरे दिल में आपके लिए एक प्रेम और आदर का भाव पैदा हो गया है। आपके सादे रहन- सहन ने मुझे मोहित कर लिया है। अगर हयाशर्म मेरा दामन न पकड़े होती तो मैं अपनी भावनाओं को और भी स्पष्ट शब्दों में प्रकाशित करती। साल भर हुआ कि मैंने सामान्य पुरुषों की दुर्बलताओं से निराश होकर यह इरादा कर लिया था कि शेष जीवन खुशियों का सपना देखने में काटूंगी। मैंने ढूँढा, मगर जिस दिल की तलाश थी, न मिला। लेकिन जबसे मैंने आपको देखा है, मुद्दतों की सोयी हुई उमंगें जाग उठी हैं। आपके चेहरे पर सुन्दरता और जवानी की रोशनी न सही भगर कल्पना की झलक मौजूद है, जिसकी मेरी निगाह में ज्यादा इज्जत है। हालांकि मेरा खयाल है कि अगर आपको अपने बहिरंग की चिन्ता होती तो शायद मेरे अस्तित्व का दुर्बल अंश ज़्यादा प्रसन्न होता। मगर मैं रूप की भूखी नहीं हूँ। मुझे एक सच्चे, प्रदर्शन से मुक्त, सीने में दिल रखनेवाले इन्सान की चाह है और मैंने उसे पा लिया । मैंने एक चतुर पनडुब्बे की तरह समुन्दर की तह में बैठकर उस रतन को ढूँड़ निकाला है, मेरी आपसे केवल यह प्रार्थना है कि आप कल रात को डाक्टर किचलू के मकान पर तशरीफ़ लायें। मैं आपका बहुत एहसान मानूंगी। वहाँ एक हरे कपड़े पहने स्त्री अशोकों के कुंज में आपके लिए आंखें बिछाये बैठी नज़र आयेगी।

इस खत को अक्षयकुमार ने दोबारा पढ़ा। इसका उनके दिल पर क्या असर हुआ, यह बयान करने की ज़रूरत नहीं। वह ऋषि नहीं थे, हालांकि ऐसे नाजुक मौके पर ऋषियों का फिसल जाना भी असम्भव नहीं। उन्हें एक नशा-सा महसूस होने लगा। ज़रूर इस परी ने मुझे यहां बैठे देखा होगा। मैंने आज कई दिन से आईना भी नहीं देखा, जाने चेहरे की क्या कैफियत हो रही है। इस खयाल से बेचैन होकर वह दौड़े हुए एक हौज़ पर गये और उसके साफ़ पानी में अपनी सूरत देखी, मगर संतोष न हुआ। बहुत तेजी से कदम बढ़ाते हुए मकान की तरफ़ चले और जाते ही आइने पर निगाह दौड़ायी । हजामत साफ़ नहीं है और साफ़ा कम्बख्त खूब- सूरती से नहीं बाँधा। मगर तब भी मुझे कोई बदसूरत नहीं कह सकता। यह ज़रूर कोई आला दरजे की पढ़ी-लिखी, ऊंचे विचारोंवाली स्त्री है। वर्ना मामूली औरतों