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नसीहतों का दफ्तर
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की निगाह में तो दौलत और रूप के सिवा और कोई चीज जंचती ही नहीं। तो भी मेरा यह फूहड़पन किसी सुरुचि-सम्पन्न स्त्री को अच्छा नहीं मालूम हो सकता । मुझे अब इसका ज्यादा जयाल रखना होगा। आज मेरे भाग्य जागे हैं। बहुत मुद्दत के बाद मेरी कद्र करनेवाला एक सच्चा जौहरी नजर आया है। भारतीय स्त्रियां शर्म और हया की पुतली होती हैं। जब तक कि अपने दिल की हलचलों से मजबूर न हो जायें वह ऐसा खत लिखने का साहस नहीं कर सकतीं।

इन्हीं खयालों में बाबू अक्षयकुमार ने रात काटी। पलक तक नहीं झपको।

दूसरे दिन सुबह दस बजे तक बाबू अक्षयकुमार ने शहर की सारी फ़ैशनेबुल दुकानों की सैर की। दुकानदार हैरत में थे कि आज वाबू साहब यहां कैसे भूल पड़े। कभी भूलकर भी न झांकते थे, यह कायापलट क्योंकर हुई ? गरज आज उन्होंने बड़ी बेदर्दी से रुपया खर्च किया और जब घर चले तो फ़िटन पर बैठने की जगह न थी।

हेमवती ने उनके माथे पर से पसीना साफ़ करके पूछा-आज सबेरे से कहाँ गायव हो गये ? अक्षयकुमार ने चेहरे को ज़रा गम्भीर बनाकर जवाब दिया--आज जिगर में कुछ दर्द था, डाक्टर चड्ढा के पास चला गया था।

हेमवती के सुन्दर हँसते हुए चेहरे पर मुस्कराहट-सी आ गयी, बोली---तुमने मुझसे बिलकुल जिक्र नहीं किया ? जिगर का दर्द भयानक मर्ज है।

अक्षयकुमार--डाक्टर साहब ने कहा है, कोई डरने की बात नहीं है ।

हेमवती-इसकी दवा डा० किचलू के यहां बहुत अच्छी मिलती है। मालूम नहीं डाक्टर चड्ढा मर्ज की तह तक पहुंचे भी या नहीं।

अक्षयकुमार ने हेमवती की तरफ़ एक बार चुभती हुई निगाहों से देखा और खाना खाने लगे। इसके बाद अपने कमरे में जाकर लेटे। शाम को जब वह पार्क, घंटाघर, आनन्दबाग की सैर करते हुए फ़िटन पर जा रहे थे तो उनके होठों पर लाली और गालों पर जवानी की गुलाबी झलक मौजूद थी। तो भी प्रकृति के अन्याय पर, जिसने उन्हें रूप की सम्पदा से वंचित रक्खा था, उन्हें आज जितना गुस्सा आया, शायद और कभी न आया हो। आज वह पतली नाक के बदले अपना खूबसूरत गाउन और डिप्लोमा सब कुछ देने के लिए तैयार थे