यो ग़ज़ब का दिलेर, मौत के सामने भी ताल ठोंककरतर पड़े मगर उसकी बहादुरी खून की प्यास से पाक थी। उसके वार बिना पर की चिड़ियों या बेजबान जानवरों पर नहीं होते थे। उसकी तलवार कमजोरों पर नहीं उठती थी। गरीबों की हिमायत, अनाथों की सिफ़ारिशें, निर्धनों की सहायता और भाग्य के मारे हुओं के घाव की मरहम-पट्टी इन कामों से उसकी आत्मा को सुख मिलता था। दो साल हुए वह इन्दौर कालेज से ऊँची शिक्षा पाकर लौटा था और तब से उसका यह जोश असाधारण रूप से बढ़ा हुआ था, इतना कि वह साधारण समझदारी की सीमाओं को लांघ गया था। चौबीस साल का लम्बा-तडंगा, हैकल जवान, धन-ऐश्वर्य के बीच पला हुआ, जिसे चिन्ताओं की कभी हवा तक न लगी, अगर रुलाया तो हँसी ने, वह ऐसा नेक हो, उसके मर्दाना चेहरे पर चिन्तन का पीलापन और झुर्रियाँ नज़र आयें यह एक असाधारण बात थी। उत्सव का शुभ दिन पास आ पहुँचा था, सिर्फ चार दिन बाक़ी थे। उत्सद का प्रबन्ध पूरा हो चुका था, सिर्फ अगर कसर थी तो कहीं-कहीं दोबारा नज़र डाल लेने की। तीसरे पहर का वक्त था, राजा साहब रनिवास में बैठे हुए कुछ चुनी हुई अप्सराओं का गाना सुन रहे थे। उनकी सुरीली तानों से जो खुशी हो रही थी, उससे कहीं ज्यादा खुशी यह सोचकर हो रही थी कि यह तराने पोलिटिकल एजेण्ट को भड़का देंगे। वह आंखें बन्द करके सुनेगा और मारे खुशी के उछल-उछल पड़ेगा।
इस विचार से जो प्रसन्नता होती थी वह तानसेन की तानों में भी नहीं हो सकती थी। आह, उसकी जुबान से अनजाने ही वाह वाह निकल पड़ेगी। अजब नहीं कि उठकर मुझसे हाथ मिलाये और मेरे चुनाव की तारीफ़ करे। इतने में कुंवर इन्दरमल बहुत सादा कपड़े पहने सेवा में उपस्थित हुए और सर झुकाकर अभिवादन किया। राजा साहब की आंखें शर्म से झुक गयीं, मगर कुंवर साहब का इस समय आना अच्छा नहीं लगा। गानेवालियों को वहां से उठ जाने का इशारा किया।
कुंवर इन्दरमल बोले- महाराज, क्या मेरी बिनती पर बिलकुल ध्यान न दिया जायगा?
राजा साहब गद्दी के उत्तराधिकारी राजकुमार की इज्जत करते थे और मुहब्बत तो कुदरती बात थी, तो भी उन्हें यह वेमौका हा पसन्द न आता था। वह इतने संकीर्ण बुद्धि न थे कि कुंवर साहब की नेक सलाहों की कद्र न करें। इससे निश्चय ही राज्य पर बोझ बढ़ता जाता था और रिआया पर बहुत जुल्म करना पड़ता था। मैं अंबा नहीं हूं कि ऐसी मोटी-मोटी बातें न समझ सकूँ। मगर अच्छी बातें