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राजहठ
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भी मौका-महल देखकर की जाती हैं। आखिरकार नाम और यश, इज्जत और आबरू भी तो कोई चीज़ है ? रियासत में संगमरमर की सड़कें बनवा दूं, गली-गली मदरसे खोल दूं, घर-घर कुएँ खोदवाईं, दवाओं की नहरें जारी कर दूं भगर दशहरे की धूम-धाम से रियासत की जो इज्जत और नाम है वह इन बातों से कभी हासिल नहीं हो सकता। यह हो सकता है कि धीरे-धीरे यह खर्च घटा दूं मगर एकबारगी ऐसा करना न तो उचित है और न सम्भव । जवाब दिया--आखिर तुम क्या चाहते हो? क्या दशहरा बिलकुल बन्द कर दूँ ?

इन्दरमल ने राजा साहब के तेवर बदले हुए देखे, तो बड़े आदरपूर्वक बोले- मैंने कभी दशहरे के उत्सव के खिलाफ़ मुंह से एक नहीं निकाला, यह हमारा जातीय पर्व है, यह विजय का शुभ दिन है, आज के दिन खुशियाँ मनाना हमारा जातीय कर्तव्य है । मुझे सिर्फ इन' अप्सराओं से आपत्ति है, नाच-गाने से इस दिन की गम्भीरता और महत्ता डूब जाती है ।

राजा साहब ने व्यंग्य के स्वर में कहा- तुम्हारा मतलब है कि रो-रोकर जशन मनाएं, मातम करें!

इन्दरमल ने तीखे होकर कहा--यह न्याय के सिद्धान्तों के खिलाफ़ वात है कि तो उत्सव मनाएं और हजारों आदमी उसकी बदौलत मातम करें। वीस हजार मजदूर एक महीने से मुफ्त में काम कर रहे हैं, क्या उनके घरों में खुशियां मनाई जा रही हैं ? जो पसीना बहायें वह रोटियों को तरसें और जिन्होंने हराम- कारी को अपना पेशा बना लिया है, वह हमारी महफ़िलों की शोभा बनें । मैं अपनी आंखों से यह अन्याय और अत्याचार नहीं देख सकता। मैं इस पाप-कर्म में योग नहीं दे सकता । इससे तो यही अच्छा है कि मुंह छिपाकर कहीं निकल जाऊं। ऐसे राज में रहना, मैं अपने उसूलों के खिलाफ़ और शर्मनाक समझता हूँ। इन्दरमल ने तैश में यह धृष्टतापूर्ण बातें कीं। मगर पिता के प्रेम को जगाने की कोशिश ने राजह्व के सोये हुए काले देव को जगा दिया। राजा साहब गुस्से से भरी हुई आंखों से देखकर बोले-हां मैं भी यही ठीक समझता हूँ। तुम अपने उसूलों के पक्के हो तो मैं भी अपनी धुन का पूरा हूँ ।

इन्दरमल ने मुस्कराकर राजा साहब को सलाम किया। उसका मुसकरान घाव पर नमक हो गया। राजकुमार की आंखों में कुछ बूंदें शायद मरहम का काम देती। wali