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त्रिया - चरित्र
 

सेठ लगनदास जी के जीवन की बगिया फलहीन थी। कोई ऐसा मानवीय, आध्यात्मिक या चिकित्सात्मक प्रयत्न न था जो उन्होंने न किया हो । यों शादी में एक-पत्नीव्रत' के कायल थे मगर जरूरत और आग्रह से विवश होकर एक-दो नहीं पाँच शादियाँ की, यहाँ तक कि उम्र के चालीस साल गुज़र गये और अँधेरे घर में उजाला न हुआ। बेचारे वहुत रंजीदा रहते। यह धन-संपत्ति, यह ठाट-बाट, यह वैभव और ऐश्वर्य क्या होंगे। मेरे बाद इनका क्या हाल होगा, कौन इनको भोगेगा। यह खयाल बहुत अफ़सोसनाक' था। आखिर यह सलाह हुई कि किसी लड़के को गोद लेना चाहिए मगर यह मसला पारिवारिक झगड़ों के कारण कई सालों तक स्थगित रहा। जब सेठ जी ने देखा कि बीवियों में अब तक बदस्तूर कशमकश हो रही है तो उन्होंने नैतिक साहस से काम लिया और एक होनहार अनाथ लड़के को गोद ले लिया। उसका नाम रखा गया मगनदास । उसकी उम्र पाँच-छ: साल से ज्यादा न थी। बला का जहीन और तमीज़दार । मगर औरतें सब कुछ कर सकती हैं, दूसरे के बच्चे को अपना नहीं समझ सकतीं। यहां तो पांच औरतों का साझा था। अगर एक उसे प्यार करती तो बाकी चार औरतों का फ़र्ज़ था कि उससे नफ़- रत करें। हाँ, सेठ जी उसके साथ बिलकुल अपने लड़के की-सी मुहब्बत करते थे। पढ़ाने को मास्टर रक्खे, सवारी के लिए घोड़े ! रईसी खयाल के आदमी थे। राग- रंग का सामान भी मुहैया था। गाना सीखने का लड़के ने शौक़ किया तो उसका भी इन्तज़ाम हो गया। ग़रज़ जब मगनदास जवानी पर पहुँचा तो रईसाना दिल- चस्पियों में उसे कमाल हासिल था। उसका गाना सुनकर उस्ताद लोग कानों पर हाथ रखते। शहसवार ऐसा कि दौड़ते हुए घोड़े पर सवार हो जाता। डीलडौल, शक्ल सूरत में उसका-सा अलबेला जवान दिल्ली में कम होगा। शादी का मसला पेश हुआ। नागपुर के करोड़पति सेठ मक्खनलाल वहुत लहराये हुए थे। उनकी लड़की से शादी हो गयी। धूमधाम का जिक्र किया जाय तो किस्सा वियोग की रात