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त्रिय- चरित्र
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से भी लम्बा हो जाय। मक्खनलाल का उसी शादी में दीवाला निकल गया। इस वक्त मगनदास से ज्यादा ईर्ष्या के योग्य आदमी और कौन होगा? उसकी . ज़िन्दगी की बहार उमंगों पर थी और मुरादों के फूल अपनी शबनमी ताज़गी में खिल-खिलकर हुस्न और ताजगी का समां दिखा रहे थे। मगर तक़दीर की देवी कुछ और ही सामान कर रही थी। वह सैर-सपाटे के इरादे से जापान गया हुआ था कि दिल्ली से खबर आयी कि ईश्वर ने तुम्हें एक भाई दिया है। मुझे इतनी खुशी है कि ज्यादा अर्से तक जिन्दा न रह सकूँ। तुम बहुत जल्द लौट आओ।

मगनदास के हाथ से तार का काग़ज छूट गया और सर में ऐसा चक्कर आया कि जैसे किसी ऊंचाई से गिर पड़ा है।

मगनदास का किताबी ज्ञान बहुत कम था। मगर स्वभाव की सज्जनता से वह खाली न था। हाथों की उदारता ने, जो समृद्धि का वरदान है, हृदय को भी उदार बना दिया था। उसे घटनाओं की इस कायापलट से दुख आखिर इन्सान ही था, मगर उसने धीरज से काम लिया और एक आशा और भय की मिली-जुली हालत में देश को रवाना हुआ।

रात का वक्त था। जब अपने दरवाजे पर पहुंचा तो नाच-गाने की महफिल सजी देखी। उसके कदम आगे न बढ़े, लौट पड़ा और एक दुकान के चबूतरे पर वैठ- कर सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए। इतना तो उसे यकीन था कि सेट जी उसके साथ उसी भलमन्सी और मुहब्बत से पेश आयेंगे बल्कि शायद अब और भी कृपा करने लगे। सेठानियां भी अब उसके साथ गैरों का-सा बर्ताव न करेंगी। मुम- किन है मझली बहू जो इस बच्चे की खुशनसीब माँ थीं, उससे दूर-दूर रहें मगर बाकी चारों सेठानियों की तरफ़ से सेवा-सत्कार में कोई शक नहीं था। उनकी डाह से वह फायदा उठा सकता था। ताहम उसके स्वाभिमान ने गवारा न किया कि जिस घर में मालिक की हैसियत से रहता था उसी घर में अब एक आश्रित की हैसियत से जिन्दगी बसर करें। उसने फैसला कर लिया कि अव यहाँ रहना न मुनासिब है, न मसलहत । मगर जाऊँ कहाँ ? न कोई ऐसा फ़न सीखा, न कोई ऐसा इल्म हासिल किया जिससे रोज़ी कमाने की सूरत पैदा होती। रईसाना दिलचस्पियाँ उसी वक्त तक कद्र की निगाह से देखी जाती हैं जब तक कि वे रईसों के आभूषण रहें। जीविका