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त्रिया- चरित्र
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उसे अच्छा अभ्यास था मगर इस हैसियत में उससे फायदा उठाना असम्भव था। उसने संगीत का बहुत अभ्यास किया था। किसी रसिक रईस के दरबार में उसकी क़दर हो सकती थी। मगर उसके पुरुषोचित अभिमान ने इस पेशे को अख्तियार करने की इजाजत न दी। हाँ, वह आला दर्जे का धुड़सवार था और यह फ़न मजे में पूरी शान के साथ उसकी रोज़ी का साधन बन सकता था। यह पक्का इरादा करके उसने हिम्मत से क़दम आगे बढ़ाये। ऊपर से देखने पर यह वात यक़ीन के काबिल नहीं मालूम होती मगर वह अपना बोझ हलका हो जाने से इस वक्त बहुतउदास नहीं था। मर्दाना हिम्मत का आदमी ऐसी मुसीबतों को उसी निगाह से देखता है जिससे एक होशियार विद्यार्थी परीक्षा के प्रश्नों को देखता है। उसे अपनी हिम्मत आजमाने का, एक मुश्किल से जूझने का मौका मिल जाता है। उसकी हिम्मत अनजाने ही मजबूत हो जाती है। अक्सर ऐसे मार्को मर्दाना हौसले के लिए प्रेरणा का काम देते हैं। मगनदास इस जोश से क़दम बढ़ाता चला जाता था कि जैसे कामयाबी की मंज़िल सामने नज़र आ रही है। मगर शायद वहाँ के घोड़ों ने शरारत और बिगडैलपन से तोबा कर ली थी या वे स्वाभाविक रूप से बहुत मज़े में धीमे-धीमे चलनेवाले थे। वह जिस गाँव में जाता निराशा को उकसानेवाला जवाब पाता। आखिरकार शाम के वक्त जब सूरज अपनी आखिरी मंजिल पर जा पहुंचा था, उसकी कठिन मंज़िल तमाम हुई। नागरघाट के ठाकुर अटल सिंह ने उसकी जीविका की चिन्ता को समाप्त किया।

यह एक बड़ा गाँव था। पक्के मकान बहुत थे। मगर उनमें प्रेतात्माएँ आबाद थीं। कई साल पहले प्लेग ने आबादी के बड़े हिस्से को इस क्षणभंगुर संसार से उठाकर स्वर्ग में पहुंचा दिया था। इस वक्त प्लेग के बचे-खुचे लोग गाँव के नौजवान और शौक़ीन ज़मीन्दार साहब और हलके के कारगुजार और रोवीले थानेदार साहब थे। उनकी मिली-जुली कोशिशों से गाँव में सतयुग का राज था। वन- दौलत को लोग जान का अज़ाब समझते थे। उसे गुनाह की तरह छिपाते थे। घर- घर में रुपये रहते हुए लोग कर्ज ले-लेकर खाते और फटेहालों रहते थे। इसी में निबाह था। काजल की कोठरी थी, सफेद कपड़े पहनना उन पर धब्बा लगाना था। हुकूमत और जबर्दस्ती का बाजार गर्म था। अहीरों के यहाँ आँजन के लिए भी दूध न था। थाने में दूध की नदी बहती थी। मवेशीखाने के मुहर्रिर दूध की कुल्लियाँ करते थे। इसी अन्धेरनगरी को मगनदास ने अपना घर बनाया। ठाकुर साहब ने असाधारण उदारता से काम लेकर उसे रहने के लिए एक मकान भी दे