पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
त्रिया- चरित्र
११३
 

जालिम दगाबाज़ कहने लगे, मगर उसका खयाल गलत निकला। रम्भा ने आँखों में आँसू भरकर सिर्फ इतना कहा--तो क्या तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे ?

मगनदास ने उसे गले लगाकर कहा- हाँ।

रम्भा-क्यों?

नगन-इसलिए कि इन्दिरा बहुत होशियार, सुन्दर और धनी है।

रम्भा--मैं तुम्हें न छोडूंगी। कभी इन्दिरा की लौंडी थी, अब उनकी सौत बनूंगी। तुम जितनी मेरी मुहब्बत करोगे उतनी इन्दिरा की तो न करोगे, क्यों ?

मगनदास इस भोलेपन पर मतवाला हो गया। मुस्कराकर बोला--अव इन्दिरा तुम्हारी लौंडी बनेगी, मगर सुनता हूँ वह बहुत सुन्दर है। कहीं मैं उसकी सूरत पर लुभा न जाऊँ। मर्दो का हाल तुम नहीं जानतीं, मुझे अपने ही से डर लगता है।

रम्भा ने विश्वासभरी आँखों से देखकर कहा-क्या तुम भी ऐसा करोगे?

उँह, जो जी में आये करना, मैं तुम्हें न छोडूंगी। इन्दिरा रानी बने, मैं लौंडी हूँगी क्या इतने पर भी मुझे छोड़ दोगे?

मगनदास की आंखे डबडबा गयीं, बोला--प्यारी, मैंने फैसला कर लिया है कि दिल्ली न जाऊँगा । यह तो मैं कहने ही न पाया कि सेठ जी का स्वर्गवास हो गया। बच्चा उनसे पहले ही चल बसा था। अफसोस सेठ जी के आखिरी दर्शन भी न कर सका। अपना बाप भी इतनी मुहब्बत नहीं कर सकता। उन्होंने मुझे अपना वारिस बनाया है। वकील साहब कहते थे कि सेठानियों में अनबन है। नौकर चाकर लूटमार मचा रहे हैं। वहाँ का यह हाल है और मेरा दिल वहाँ जाने पर राजी नहीं होता। दिल तो यहाँ हैं, वहाँ कौन जाय।

रम्भा जरा देर तक सोचती रही, फिर बोली-तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगी। इतने दिन तुम्हारे साथ रही, ज़िन्दगी का सुख लूटा, अब जब तक जिऊँगी इस सुख का ध्यान करती रहूँगी। मगर तुम मुझे भूल तो न जाओगे? साल में एक बार देख लिया करना और इसी झोपड़े में।

मगनदास ने बहुत रोका मगर आँसू न रुक सके, बोले-रम्भा, यह बातें न करो, कलेजा बैठा जाता है। मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता, इसलिए नहीं कि तुम्हारे ऊपर कोई एहसान है। तुम्हारी खातिर नहीं, अपनी खातिर। वह शान्ति, वह प्रेम, वह आनन्द जो मुझे यहाँ मिलता है और कहीं नहीं मिल सकता। खुशी के साथ जिन्दगी बसर हो, यही मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। मुझे ईश्वर ने वह