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मिलाप
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लाल साहब ढीले पड़ गये। रुपया दिया, खुशामद की और उसी दिन नानकचन्द कश्मीर की सैर के लिए रवाना हुआ।

मगर नानकचन्द यहाँ से अकेला न चला। उसकी प्रेम की धातें आज सफल हो गयी थीं। पड़ोस में बाबू रामदास रहते थे। बेचारे सीधे-सादे आदमी थे, सुवह को दफ्तर जाते और शाम को आते और इस बीच नानकचन्द अपने कोठे पर बैठा हुआ उनकी बेवा लड़की से मुहब्बत के इशारे किया करता। यहाँ तक कि अभागी. ललिता उसके जाल में आ फंसी। भाग जाने के मंसूबे हुए।

आधी रात का वक्त था, ललिता एक साड़ी पहने अपनी चारपाई पर करवटें वदल रही थी। जेवरों को उतारकर उसने एक सन्दूकचे में रख दिया था। उसके दिल में इस वक्त तरह-तरह के खयाल दौड़ रहे थे और कलेजा जोर-जोर से धड़क रहा था। मगर चाहे और कुछ न हो, नानकचन्द की तरफ से उसे बेवफाई का ज़रा भी गुमान न था। जवानी की सबसे बड़ी नेमत मुहब्बत है और इस नेमत को पाकर ललिता अपने को खुशनसीव समझ रही थी। रामदास वेसुध सो थे कि इतने में कुण्डी खटकी) ललिता चौंककर उठ खड़ी हुई। उसने जेवरों का सन्दूकचा उठा लिया। एक बार इधर-उधर हसरत-भरी निगाहों से देखा और दबे पाँव चौंक- चौंककर कदम उठाती देहलीज़ में आयी और कुण्डी खोल दी। नानकचन्द ने उसे गले से लगा लिया। बग्घी तैयार थी, दोनों उस पर जा बैठे।

सुबह को बाबू रामदास उठे, ललिता न दिखायी दी। घबराये, सारा घर छान मारा, कुछ पता न चला! बाहर की कुण्डी खुली देखी। बग्घी के निशान नज़र आये। सर पीटकर बैठ गये। मगर अपने दिल का दर्द किससे कहते। हँसी और बदनामी का डर जबान पर मोहर हो गया। मशहूर किया कि अपने ननिहाल चली गयी, मगर लाला ज्ञानचन्द सुनते ही भाँप गये कि कश्मीर की सैर के कुछ और ही माने थे। धीरे-धीरे यह बात सारे मुहल्ले में फैल गयी। यहाँ तक कि बाबू रामदास ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली।

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मुहब्बत की सरगर्मियाँ नतीजे की तरफ से बिलकुल बेखबर होती हैं। नानक- चन्द जिस वक्त बग्घी में ललिता के साथ बैठा तो उसे इसके सिवाय और कोई खयाल