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गुप्त धन
 

एक सपने को सी हालत छायी हुई थी, मगर जब नानकचन्द ने उसे सीने से लगाकर कहा 'ललिता, अब तुमको अकेले न रहना पड़ेगा, तुम्हें इन आँखों की पुतली बनाकर रखूँगा। मैं इसीलिए तुम्हारे पास आया हूँ। मैं अब तक नरक में था, अब तुम्हारे साथ स्वर्ग का सुख भोगूंगा। तो ललिता चौंकी और छिटककर अलग हटती हुई बोली—आँखों को लो यकीन आ गया मगर दिल को नहीं आता। ईश्वर करे यह सपना न हो!

—ज़माना, जून १९१३


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