पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१४८

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गुप्त धन उलझता था, गोपाल पैंतरे बदलता था। उसे अपनी ताकत का ज़ोम था, इसे अपने करतब का भरोसा। कुछ देर तक अखाड़े से ताल ठोंकने की आवाजें आती रही, तब यकायक बहुत से आदमी खुशी के नारे मार-मार उछलने लगे, कपड़े और वर्तन और पैसे और बताशे लुटाये जाने लगे। किसी ने अपना पुराना साफा फेंका, किसी ने अपनी बोसीदा टोपी हवा में उड़ा दी। साठे के मनचले जवान' अखाड़े में पिल पड़े। और गोगल को गोद में उठा लाये। बलदेव और उसके साथियों ने गोपाल को लहू की आँखों से देखा और दाँत पीसकर रह गये। २ दस बजे रात का वक्त और सावन का महीना। आसमान पर काली घटाएँ छायी हुई थीं। अंधेरे का यह हाल था कि जैसे रोशनी का अस्तित्व ही नहीं रहा। कभी-कभी बिजली चमकती थी मगर अँधेरे को और ज्यादा अँधेरा करने के लिए। मेडकों की आवाजें जिन्दगी का पता देती थीं वर्ना चारों तरफ मौत थी। खामोश, डरावने और गम्भीर साठे के झोंपड़े और मकान इस अंधेरे में बहुत गौर से देखने पर काली-काली भेड़ों की तरह नजर आते थे। न बच्चे रोते थे, न औरतें गाती थीं। पवित्रात्मा बुड्ढे राम नाम न जपते थे। मगर आबादी से बहुत दूर कई पुरशोर नालों और डाक के जंगलों से गुजरकर ज्वार और बाजरे के खेत थे और उनकी मेंड़ों पर साठे के किसान जगह-जगह मडैया डाले खेतों की रखवाली कर रहे थे। तले जमीन, ऊपर अँधेरा, मीलों तक सन्नाटा छाया हुआ। कहीं जंगली सुअरों के गोल, कहीं नीलगायों के रेवड़, चिलम के सिवा कोई साथी नहीं, आग के सिवा कोई मददगार नहीं। जरा मटका हुआ और चौंक पड़े। अँधेरा भय का दूसरा नाम है, जब मिट्टी का एक ढेर, एक ठूठा पेड़ और घास का एक ढेर भी जानदार चीजें बन जाती हैं। अवेरा उनमें जान डाल देता है । लेकिन यह मजबूत हाथोंवाले, मजबूत जिगरवाले, मजबूत इरादेवाले किसान हैं कि यह सब सख्तियाँ झेलते हैं ताकि अपने ज्यादा भाग्यशाली भाइयों के लिए भोगविलास के सामान तैयार करें। इन्हीं रखवालों में आज का हीरो, साटे का गौरव गोपाल भी है जो अपनी मडैया में बैठा हुआ है और नींद को भगाने के लिए धीमे युरों में यह गीत गा रहा है मैं तो तोसे नैना लगाय पछतायी रे अचानक उसे किसी के पाँव की आहट मालूम हुई। जैसे हिरन कुत्तों की आवाजों को कान लगाकर सुनता है उसी तरह गोपाल ने भी कान लगाकर सुना।