पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१५१

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अंधेर १३९ मुखिया का चेहरा फ़क हो गया। बड़प्पन के स्वर में बोले-धीरे बोलो, कहीं सुन ले तो गजब हो जाय लेकिन गोपाल बिफरा हुआ था, अकड़कर बोला-~मैं एक कौड़ी भी न दूंगा। देखें कौन मेरे फांसी लगा देता है। गौरा ने बहलाने के स्वर में कहा--अच्छा जब मैं तुमसे रुपये मांगू लो मत देना। यह कहकर गौरा ने, जो इस वक्त लौंडी के बजाय रानी बनी हुई थी, छप्पर के एक कोने में से रुपयों की एक पोटली निकाली और मुखिया के हाथ में रख दी। गोपाल दाँत पीसकर उठा, लेकिन मुखिया साहब फौरन से पहले सरक गये। दारोगा जी ने गोपाल की बातें सुन ली थीं और दुआ कर रहे थे कि ऐ खुदा,इस मरदूद के दिल को पलट। इतने में मुखिया ने बाहर आकर पचीस रुपये की पोटली दिखायी। पचीस रास्ते ही में गायब हो गये थे। दारोगा जी ने खुदा का शुक्र किया। दुआ सुनी गयी। रुपया जेब में रक्खा और रसद पहुँचानेवालों की भीड़ को रोते और बिलबिलाते छोड़कर हवा हो गये। मोदी का गला घुट गया। कसाई के गले पर छुरी फिर गयी। तेली पिस गया। मुखिया साहब ने गोपाल की गर्दन पर एहसान रक्ता गोया रसद के दाम गिरह से दिये। गाँव में सुखरू हो गया, प्रतिष्ठा बढ़ गयी। इधर गोपाल ने गौरा की खूब खबर ली। गाँव में रात भर यही चर्चा रही। गोपाल बहुत बचा और इसका सेहरा मुखिया के सिर था। बड़ी विपत्ति आयी थी। वह टल गयी। पितरों ने, दीवान हरदौल ने, नीम तलेवाली देवी ने, तालाब के किनारेवाली सती ने गोपाल की रक्षा को। यह उन्हीं का प्रताप था। देवी की पूजा होनी जरूरी थी। सत्यनारायण की कथा भी लाजिमी हो गयी। ५ फिर सुबह हुई लेकिन गोपाल के दरवाजे पर आज लाल पगड़ियों के बजाय लाल साड़ियों का जमघट था। गौरा आज देवी की पूजा करने जाती थी और गाँव की औरतें उसका साथ देने आयी थीं। उसका घर सोंधी सोंधी मिट्टी की खुशबू से महक रहा था जो खस और गुलाब से कम मोहक न थी। औरतें सुहाने गीत गा रही थीं। बच्चे खुश हो होकर दौड़ते थे। देवी के चबूतरे पर उसने मिट्टी का हाथी चढ़ाया। सती की मांग में सेंदुर डाला। दीवान साहब को बताशे और हलुआ खिलाया। हनुमान जी को लड्डू से ज्यादा प्रेम है, उन्हें लड्डू चढ़ाये। तब गाती-वजाती धर को आयी और सत्यनारायण की कथा की तैयारियां होने लगीं।