पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१५५

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सिर्फ एक आवाज १४३ नदी! वह लहराता हुआ नौला मैदान ! वह प्यासों की प्यास बुझानेवाली ! वह निराशों की आशा ! वह वरदानों की देवी! वह पवित्रता का स्रोत ! वह मुट्ठी भर खाक को आश्रय देनेवाली गंगा हँसती-मुस्कराती थी और उछलती थी। क्या इसलिए कि आज वह अपनी चौतरफा इज्जत पर फूली न समाती थी या इसलिए कि वह उछल-उछलकर अपने प्रेमियों से गले मिलना चाहती थी जो उसके दर्शनों के लिए मंजिलें तय करके आये थे। और उसके परिवान की प्रशंसा किस जवान से हो, जिस पर सूरज ने चमकते हुए तारे टाँके थे और जिसके किनारों को उसकी किरणों ने रंग-बिरंग, सुन्दर और गतिशील फूलों से सजाया था। अभी ग्रहण लगने में घण्टों की देर थी। लोग इधर-उधर टहल रहे थे। कहीं मदारियों के खेल थे, कहीं चूरनवाले की लच्छेदार बातों के चमत्कार। कुछ लोग मेड़ों की कुश्ती देखने के लिए जमा थे। ठाकुर साहब भी अपने कुछ भक्तों के साथ सैर को निकले। उनकी हिम्मत ने गवारा न किया कि इन बाजारू दिलचस्पियों में शरीक हो। यकायक उन्हें एक बड़ा-सा शामियाना तना हुआ नज़र आया, जहाँ ज्यादातर पढ़े-लिखे लोगों की भीड़ थी। ठाकुर साहब ने अपने साथियों को एक किनारे खड़ा कर दिया और खुद गर्व से ताकते हुए फर्श पर जा बैठे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि यहाँ उन पर देहातियों की ईर्ष्या दृष्टि पड़ेगी और सम्भव है कुछ ऐसी बारीक बातें भी मालूम हो जायें जो उनके भक्तों को उनकी सर्वज्ञता का विश्वास दिलाने में काम दे सकें। यह एक नैतिक अनुष्ठान था। दो-ढाई हजार आदमी बैठे हुए एक मधुरभाषी वक्ता का भाषण सुन रहे थे। फैशनेबुल लोग ज्यादातर अगली पंक्तियों में बैठे हुए थे जिन्हें कनबतियों का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता था! कितने ही अच्छे कपड़े पहने हुए लोग इसलिए दुखी नज़र आते थे कि उनकी बग़ल में निम्न श्रेणी के लोग बैठे हुए थे। भाषण दिलचस्प मालूम पड़ता था। वजन ज्यादा था और चटखारे कम, इसलिए तालियाँ नहीं बजती थीं। ३ वक्ता ने अपने भाषण में कहामेरे प्यारे दोस्तो, यह हमारा और आपका कर्तव्य है। इससे ज्यादा महत्वपूर्ण, ज्यादा परिणामदायक और कौम के लिए ज्यादा शुभ और कोई कर्तव्य नहीं है। हम मानते हैं कि उनके आचार-व्यवहार की दशा अत्यन्त करुण है। मगर विश्वास