पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१६२

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१५० गुप्त धन सुख-चैन के आंचल से निकलते ही इन लाड़-प्यार में पली हुई गुड़ियों पर चारों तरफ से छड़ियों और लकड़ियों की बौछार होने लगती है। रेवती यह सैर देख रही थी और हीरामन सागर की सीढ़ियों पर और लड़कियों के साथ गुड़ियाँ पीटने में लगा हुआ था। सीढ़ियों पर काई लगी हुई थी। अचानक उसका पांव फिसला तो पानी में जा पड़ा। रेवतीचीख मारकर दौड़ी और सर पोटने लगी। दम के दम में वहाँ मर्दो और औरतों का ठट लग गया मगर यह किसी को इन्सानियत तक़ाजा न करती थी कि पानी में जाकर मुमकिन हो तो बच्चे की जान बचाये। संवारे हुए बाल न बिखर जायंगे ! धुली हुई धोती न भीग जायगी ! कितने ही मों के दिलों में यह मर्दाना खयाल आ रहे थे। दस मिनट गुज़र गये। मगर कोई आदमी हिम्मत करता नज़र न आया। गरीब रेवती पछाड़ें खा रही थी। अचानक उवर से एक आदमी अपने घोड़े पर सवार चला जाता था। यह भीड़ देखकर उतर पड़ा और एक तमाशाई से पूछा--यह कैसी भीड़ है ? तमाशाई ने जवाब दिया-एक लड़का डूब गया है। मुसाफिर--कहां? तमाशाई--जहाँ वह औरत खड़ी रो रही है। मुसाफिर ने फौरन अपनी गाढ़े को मिर्ज़ई उतारी और बोती कसकर पानी में कूद पड़ा। चारों तरफ सन्नाटा छा गया। लोग हैरान थे कि यह आदमी कौन है। उसने पहला गोता लगाया, लड़के की टोपी मिली। दूसरा गोता लगाया तो उसकी छड़ी हाथ लगी और तीसरे मोते के बाद जब ऊपर आया तो लड़का उसकी गोद में था। तमाशाइयों ने जोर से वाह-वाह का नारा बुलन्द किया। मां दौड़कर बच्चे से लिपट गयी। इसी बीच पण्डित चिन्तामणि के और कई मित्र आ पहुंचे और लड़के को होश में लाने की फिक्र करने लगे। आव धण्टे में लड़के ने आंखें खोल दीं। लोगों की जान में जान आयी। डाक्टर साहब ने कहा----अगर लड़का दो मिनट पानी में रहता तो वचना असम्भव था। मगर जब लोग अपने गुमनाम भलाई करने वाले को ढूंहने लगे तो उसका कहीं पता न था। चारों तरफ आदमी दौड़ाये, सारा मेला छान मारा, मगर वह नजर न आया। २ बीस साल गुज़र गये। पण्डित चिन्तामणि का कारोबार रोज़-ब-रोज़ बढ़ता गया। इस बीच में उसकी मां ने सातों यात्राएं कों और मरी तो उनके नाम पर