पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

नेकी १५३ यह कहकर उसने लाठी उठायी और अपने घर चला आया। बूढ़ी ठकुराइन ने पूछा--देखा जमींदार को, कैसे आदमी हैं ? तखत सिंह-अच्छे आदमी हैं। मैं उन्हें पहचान गया। ठकुराइन----क्या तुमसे पहले की मुलाकात है ? तखत सिंह--मेरी उनकी बीस बरस की जान-पहिचान है। गुड़ियों के मेलेवाली बात याद है न ? उस दिन से तखत सिंह फिर हीरामणि के पास न आया। ४ छः महीने के बाद रेवती को भी श्रीपुर देखने का शौक़ हुआ। वह और उसकी बहू और बच्चे सब श्रीपुर आये। गाँव की सब औरतें उनसे मिलने आयीं। उनमें बूढ़ी ठकुराइन भी थी। उसकी बातचीत, सलीक़ा और तमीज़ देखकर रेवती दंग रह गयी। जब वह चलने लगी तो रेवती ने कहा-उकुराइन, कभी कभी आया करना, तुमसे मिलकर तबियत बहुत खुश हुई। इस तरह दोनों औरतों में धीरे-धीरे मेल हो गया। यहाँ तो वह कैफियत थी और हीरामणि अपने मुख्तारेआम के बहकावे में आकर तखत सिंह को बेदखल करने की तरकीबें सोच रहा था। जेठ की पूरनमासी आयी। हीरामणि की सालगिरह की तैयारियां होने लगीं। रेवती चलनी में मैदा छान रही थी कि बूढ़ी उकुराइन आयी। रेवती ने मुस्कराकर कहा--उकुराइन, हमारे यहाँ कल तुम्हारा न्योता है। ठकुराइन-तुम्हारा न्योता सिर-आँखों पर। कौन-सी बरसगाँठ है ? .. रेवती-उनतीसवीं। ठकुराइन-नरायन करे, अभी ऐसे-ऐसे सौ दिन तुम्हें और देखने नसीव हों। रेवती--ठकुराइन, तुम्हारी ज़बान मुबारक हो। बड़े-बड़े जन्तर-मन्तर किये हैं तब तुम लोगों की दुआ से यह दिन देखना नसीब हुआ है। यह तो सातवें ही साल में थे कि इनकी जान के लाले पड़ गये। गुड़ियों का मेला देखने गयी थी। यह पानी में गिर पड़े। बारे, एक महात्मा ने इनकी जान बचायी। इनकी जान उन्हीं की दी हुई है। बहुत तलाश करवाया। उनका पता न चला। हर बरसगांठ पर उनके नाम से सौ रुपये निकाल रखती हूँ। दो हज़ार से कुछ ऊपर हो गये हैं। बच्चे की नीयत है कि उनके नाम से श्रीपुर में एक मन्दिर बनवा दें। सच मानो ठकुराइन,