पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१५४ गुप्त धन एक बार उनके दर्शन हो जाते तो जीवन सुफल हो जाता, जी की हवस निकाल लेते। रेवती जव खामोश हुई तो ठकुराइन की आँखों से आँसू जारी थे। दूसरे दिन एक तरफ़ हीरामणि की सालगिरह का उत्सव था और दूसरी तरफ़ तखत सिंह के खेत नीलाम हो रहे थे। ठकुराइन बोली--मैं रेवती रानी के पास जाकर दुहाई मचाती हूँ। तखत सिंह ने जवाब दिया-मेरे जीते-जी नहीं। ५ असाढ़ का महीना आया। मेवराज ने अपनी प्राणदायी उदारता दिखायी। श्रीपुर के किसान अपने-अपने खेत जोतने चले। तखत सिंह की लालसा भरी आँखें उनके साथ-साथ जाती, यहाँ तक कि जमीन उन्हें अपने दामन में छिपा लेती। तखत सिंह के पास एक गाय थी। वह अब दिन के दिन उसे चराया करता। उसकी ज़िन्दगी का अब यही एक सहारा था। उसके उपले और दूध बेचकर गुजरबसर करता। कभी-कभी फ़ाके करने पड़ जाते। यह सब मुसीबतें उसने झेली मगर अपनी कंगाली का रोना रोने के लिए एक दिन भी हीरामणि के पास न गया। हीरामणि ने उसे नीचा दिखाना चाहा था मगर खुद उसे ही नीचा देखना पड़ा, जीतने पर भी उसे हार हुई, पुराने लोहे को अपने नीच हठ की आँच से न झुका सका। एक दिन रेवती ने कहा- बेटा, तुमने गरीब को सताया, अच्छा न किया। हीरामणि ने तेज होकर जवाब दिया----वह गरीब नहीं है। उसका घमण्ड मैं तोड़ दूंगा। दौलत के नशे में मतवाला जमींदार वह चीज तोड़ने की फ़िक्र में था जो कहीं थी ही नहीं। जैसे नासमझ बच्चा अपनी परछाई से लड़ने लगता है। ६ साल भर तखत सिंह ने ज्यों-त्यों करके काटा। फिर बरसात आयी। उसका घर छाया न गया था। कई दिन तक मूसलाधार मेंह वरसा तो मकान का एक हिस्सा गिर पड़ा। गाय वहाँ बंधी हुई थी, दबकर मर गयी। तखत सिंह को भी सख्त चोट आयी। उसी दिन से बुखार आना शुरू हुआ। दवा-दारू कौन करता, रोजी का सहारा था वह भी टूटा। जालिम वेदर्द मुसीबत ने कुचल डाला। सारा मकान पानी