नेकी १५५ से भरा हुआ, घर में अनाज का एक दाना नहीं, अँधेरे में पड़ा हुआ कराह रहा था कि रेवती उसके घर गयी। तखत सिंह ने आँखें खोली और पूछा कौन है ? ठकुराइन-रेवती रानी हैं। तखत सिंह---मेरे धन्यभाग, मुझ पर बड़ी दया की। रेवती ने लज्जित होकर कहा-उकुराइन, ईश्वर जानता है, मैं अपने बेटे से हैरान हूं। तुम्हें जो तकलीफ़ हो मुझसे कहो। तुम्हारे ऊपर ऐसी आफत पड़ गयो और हमसे खबर तक न की? यह कहकर रेवती ने रुपयों की एक छोटी-सी पोटली ठकुराइन के सामने रख दी। रुपयों की झनकार सुनकर तखत सिंह उठ बैठा और बोला-रानी, हम इसके भूखे नहीं हैं। मरते दम गुनहगार न करो। दूसरे दिन हीरामणि भी अपने मुसाहिवों को लिये उबर से जा निकला। गिरा हुआ मकान देखकर मुस्कराया। उसके दिल ने कहा, आखिर मैंने उसका घमण्ड तोड़ दिया। मकान के अन्दर जाकर बोला---ठाकुर, अब क्या हाल है? ठाकुर ने धीरे से कहा-सब ईश्वर की दया आप कैसे भूल पड़े? हीरामणि को दूसरी बार हार खानी पड़ी। उसकी यह आरजू कि तखत सिंह मेरे पाँव को आँखों से चूमे, अब भी पूरी न हुई। उसी रात को वह ग़रीब, आजाद, ईमानदार और बेग़रज ठाकुर इस दुनिया से विदा हो गया। ७ बुड़ी ठकुराइन अब दुनिया में अकेली थी। कोई उसके गम का शरीक और उसके मरने पर आँसू बहानेवालान था। कंगाली ने गम की आँच और तेज कर दी थी। ज़रूरत की चीजें मौत के घाव को चाहे न भर सकें मगर मरहम का काम ज़रूर करती हैं। रोटी की चिन्ता बुरी बला है। ठकुराइन अब खेत और चरागाह से गोबर चुन लाती और उपले बनाकर वेचती। उसे लाठी टेकते हुए खेतों को जाते और गोबर का टोकरा सिर पर रखकर बोझ से हांफते हुए आते देखना बहुत ही दर्दनाक था। यहाँ तक कि हीरामणि को भी उस पर तरस आ गया। एक दिन उन्होंने आटा, दाल, चावल, थालियों में रखकर उसके पास भेजा। रेवती खुद लेकर गयी। मगर बूढ़ी ठकुराइन आँखों में आँसू भरकर बोली-रेवती, जब तक आँखों से seasesses