पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१६९

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नेको १५७ हीरामणि ठकुराइन के मकान पर पहुंचा तो वहाँ बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था। बूढ़ी औरत का चेहरा पीला था और जान निकलने की हालत उस पर छायी हुई थी। हीरामणि ने जोर से कहा-ठकुराइन, मैं हूँ, हीरामणि । ठकुराइन ने आँखें खोली और इशारे से उसे अपना सिर नजदीक लाने को कहा। फिर रुक-रुककर बोली-मेरे सिरहाने पिटारी में ठाकुर की हड्डियाँ रखी हुई हैं, मेरे सुहाग का सेंदुर भी वहीं है। यह दोनों प्रयागराज भेज देना। यह कहकर उसने आंखें बन्द कर ली। हीरामणि ने पिटारी खोली तो दोनों चीजें हिफ़ाज़त के साथ रक्खी हुई थीं। एक पोटली में दस रुपये भी रक्खे हुए मिले। यह शायद जानेवाले का सफ़रखर्च था! रात को उकुराइन के कष्टों का हमेशा के लिए अन्त हो गया। उसी रात को रेवती ने सपना देखा-सावन का मेला है, घटाएं छाई हुई हैं, मैं कीरत सागर के किनारे खड़ी हूँ। इतने में हीरामणि पानी में फिसल पड़ा। मैं छाती पीट-पीटकर रोने लगी। अचानक एक बूढ़ा आदमी पानी में कूदा और हीरामणि को निकाल लाया। रेवती उसके पाँव पर गिर पड़ी और बोली-आप कौन हैं ? उसने जवाब दिया-मैं श्रीपुर में रहता हूँ, मेरा नाम तखत सिंह है। श्रीपुर अब भी हीरामणि के क़ब्जे में है, मगर अब उसकी रौनक दोबाला हो गयी है। वहाँ जाओ तो दूर से शिवाले का सुनहरा कलश दिखायी देने लगता है। जिस जगह तखत सिंह का मकान था, वहाँ यह शिवाला बना हुआ है। उसके सामने एक पक्का कुआँ और पक्की धर्मशाला है। मुसाफिर यहाँ ठहरते हैं और तखत सिंह का गुन गाते हैं। यह शिवाला और धर्मशाला दोनों उसके नाम से मशहूर हैं। उर्दू 'प्रेमपचीसी' से