पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१७१

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बाँका जमींदार १५९ गुरुत्वाकर्षण के अलावा एक खास ताक़त होती है जो हमेशा धन को अपनी तरफ़ खींचती है। सूद और तमस्सुक और व्यापार, यह दौलत की बीच की मंजिलें जमीन उसकी आखिरी मंजिल है । ठाकुर प्रद्युम्न सिह की निगाहें बहुत अर्से से एक बहुत उपजाऊ मौजे पर लगी हुई थीं। लेकिन बैंक का एकाउण्ट कभी हौसले को कदम नहीं बढ़ाने देता था। यहाँ तक कि एक दफ़ा उसी मौजे का ज़मींदार एक कल के मामले में पकड़ा गया। उसने सिर्फ रस्मो-रिवाज के माफ़िक एक असामी को दिन भर धूप और जेठ की जलती हुई धूप में खड़ा रखा था लेकिन अगर सूरज की गर्मी या जिस्म की कमजोरी या प्यास की तेजी उसकी जानलेवा वन जाय तो इसमें जमींदार की क्या खता थी। यह शहर के वकीलों की ज्यादती थी कि कोई उसकी हिमायत पर आमादा न हुआ या मुमकिन है ज़मीन्दार के हाथ की तंगी को भी उसमें कुछ दखल हो। बहरहाल, उसने चारों तरफ से ठोकरें खाकर ठाकुर साहब को शरण ली। मुकदमा निहायत कमजोर था। पुलिस ने अपनी पूरी ताकत से धावा किया था और उसकी कुमक के लिए शासन और अधिकार के ताजे से ताजे रिसाले तैयार थे। ठाकुर साह्व अनुभवी सँपेरों की तरह साँप के बिल में हाथ नहीं डालते थे लेकिन इस मौके पर उन्हें रूखी-सूखी मसलहत के मुकाबले में अपनी मुरादों का पल्ला झुकता हुआ नजर आया। जमींदार को इत्मीनान दिलाया और वकालतनामा दाखिल कर दिया और फिर इस तरह जी-जान से मुकदमे की पैरवी की, कुछ इस तरह जान लड़ायी कि मैदान से जीत का डंका बजाते हुए निकले। जनता की ज़बान इस जीत का सेहरा उनकी कानूनी पैठ के सर नहीं, उनके मर्दाना गुगों के सर रखती है क्यों कि उन दिनों वकील साहब नजीरों और दफ़ाओं की हिम्मततोड़ पेचीदगियों में उलझने के बजाय दंगल की उत्साह्वर्द्धक दिलचस्पियों में ज्यादा लगे रहते थे लेकिन यह बात ज़रा भी यकीन करने के काबिल नहीं मालूम होती। ज्यादा जानकार लोग कहते हैं कि अनार के बमगोलों और सेब और अंगूर की गोलियों ने पुलिस के इस पुरशोर हमले को तोड़कर बिखेर दिया। ग़रज़ कि मैदान हमारे ठाकुर साहब के हाथ रहा। जमींदार की जान बची। मौत के मुंह से निकल आया। उनके पैरों पर गिर पड़ा और बोला-ठाकुर साहब, मैं इस काबिल तो नहीं कि आपकी खिदमत कर सकूँ। ईश्वर ने आपको बहुत कुछ दिया है लेकिन कृष्ण भगवान् ने ग़रीब सुदामा के सूखे चावल खुशी से क़बूल किये थे। मेरे पास बुजुर्गों की यादगार एक छोटा-सा वीरान मौजा है उसे आपकी भेंट करता हूँ। आपके लायक़ तो नहीं लेकिन मेरी खातिर से इसे क़बूल कीजिए। मैं आपका जस