पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/१७७

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बाँका जमींदार जैसे कितने ही हेकड़ों को इसी जगह कुचलवा डाला है । यह कहकर उन्होंने अपने रिसाले के सरदार अर्जुन सिंह को बुलाकर कहा--ठाकुर, अब इन चीटियों के पर निकल आये कल शाम तक इन लोगों से मेरा गाँव साफ हो जाय। हरदास खड़ा हो गया। गुस्सा अब चिनगारी बनकर आँखों से निकल रहा था। बोला-हमने इस गाँव को छोड़ने के लिए नहीं बसाया है। जब तक जियेंगे इसी गाँव में रहेंगे, यहीं पैदा होंगे और यहीं मरेंगे । आप बड़े आदमी हैं और बड़ों की समझ भी बड़ी होती है । हम लोग अक्खड़ गँवार हैं। नाहक गरीबों की जान के पीछे न पड़िए। खून-खराबा हो जायगा। लेकिन आपको यही मंजूर है तो हमारी तरफ से आपके सिपाहियों को चुनौती है, जब चाहे दिल के अरमान निकाल लें। इतना कहकर ठाकुर साहब को सलाम किया और चल दिया। उसके साथी भी गर्व के साथ अकड़ते हुए चले। अर्जुन सिंह ने उनके तेवर देखे । समझ गया कि यह लोहे के चने हैं लेकिन शोहदों का सरदार था, कुछ अपने नाम की लाज थी। दूसरे दिन शाम के वक्त जब रात और दिन में मुठभेड़ हो थी, इन दोनों जमातों का सामना हुआ। फिर वह धौल-धप्पा हुआ कि जमीन थर्रा गयी। ज़बानों ने मुँह के अन्दर वह मार्के दिखाये कि सूरज डर के मारे पच्छिम' में जा छिपा। तब लाठियों ने सिर उठाया लेकिन इसके पहले कि वह डाक्टर साहब की दुआ और शुक्रिये की मुस्तहक हों अर्जुन सिंह ने समझदारी से काम लिया। ताहम उनके चन्द आदमियों के लिए गुड़ और हल्दी पीने का सामान हो चुका था। वकील साहब ने अपनी फौज की यह बुरी हालत देखी, किसी के कपड़े फटे हुए, किसी के जिस्म पर गर्द जमी हुई, कोई हाँफते-हाँफते वेदम (खून बहुत कम नज़र आया क्योंकि यह एक अनमोल चीज़ है और इसे डंडों की मार से बचा लिया गया) तो उन्होंने अर्जुन सिंह की पीठ ठोंकी और उसकी बहादुरी और जाँबाज़ी की खूब तारीफ़ की ।। रात को उनके सामने लड्डू और इमिरतियों की ऐसी वर्षा हुई कि यह सब गर्द-गुबार धुल गया। सुबह को इस रिसाले ने ठंडे-ठंडे घर की राह ली और कसम खा गये कि अब भूलकर भी इस गाँव का रुख न करेंगे। तब ठाकुर साहब ने गाँव के आदमियों को चौपाल में तलब किया। उनके इशारे की देर थी। सब लोग इकट्ठे हो गये । अख्तियार और हुकूमत अगर घमण्ड की मसनद' से उतर आये तो दुश्मनों को भी दोस्त बना सकती है। जब सब आदमी आ गये तो ठाकुर साहब एक-एक करके उनसे बग़लगीर हुए और बोले मैं ईश्वर का बहुत ऋणी हूँ कि मुझे इस गाँव के लिए जिन आदमियों की तलाश