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गुप्त धन
 

और कहाँ अब यह पस्ती! यह करुण दरिद्रता! मगर इसका कारण क्या है? यह किस क़सूर की सजा है। कारण और कार्य का दूसरा नाम दुनिया है। जब तक हमको क्यों का जवाब न मिले, दिल को किसी तरह सब्र नहीं होता, यहाँ तक कि मौत को भी इस क्यों का जवाब देना पड़ता है। आखिर मैंने एक डाक्टर से सलाह ली। उसने आम डाक्टरों की तरह आबहवा बदलने की सलाह दी। मेरी अक्ल में भी यह बात आयी कि मुमकिन है नैनीताल की ठंडी आबह्वा से शायरी की आग ठंडी पड़ गयी हो। छ: महीने तक लगातार घूमता-फिरता रहा। अनेक आकर्षक दृश्य देखे, मगर उनसे आत्मा पर वह शायराना कैफियत न छाती थी कि प्याला छलक पड़े और खामोश कल्पना खुद ब खुद बहकने लगे। मुझे अपना खोया हुआ. लाल न मिला । अब मैं ज़िन्दगी से तंग था। ज़िन्दगी अब मुझे सूखे रेगिस्तान जैसी मालूम होती जहाँ कोई जान नहीं, ताजगी नहीं, दिलचस्पी नहीं। हरदम दिल पर एक मायूसी-सी छायी रहती और दिल खोया-खोया रहता। दिल में यह सवाल पैदा होता कि क्या वह चार दिन की चाँदनी खत्म हो गयी और अंधेरा पाख आ गया। आदमी की संगत से बेजार, हमजिन्स की सूरत से नफरत, मैं एक गुमनाम कोने में पड़ा हुआ ज़िन्दगी के दिन पूरे कर रहा था। पेड़ों की चोटियों पर बैठनेवाली, मीठे राग गानेवाली चिड़िया क्या पिंजरे में जिन्दा रह सकती है? ‘मुमकिन है कि वह दाना खाये, पानी पिये मगर उसकी इस ज़िन्दगी और मौत में कोई फर्क नहीं है।

आखिर जब मुझे अपनी शायरी के लौटने की कोई उम्मीद न रही, तो मेरे दिल में यह इरादा पक्का हो गया कि अब मेरे लिए शायरी की दुनिया से मर जाना ही बेहतर होगा। मुर्दा तो हूँ ही, इस हालत में अपने को जिन्दा समझना वेवकुफी है। आखिर मैंने एक रोज़ कुछ दैनिक पत्रों को अपने मरने की खबर दे दी। उसके छाते ही मुल्क में कोहराम मच गया, एक तहलका पड़ गया। उस वक्त मुझे अपनी लोकप्रियता का कुछ अंदाजा हुआ। यह आम पुकार थी, कि शायरी की दुनिया की किश्ती मझधार में डूब गयी। शायरी की महफिल उखड़ गयी। पत्र-पत्रिकाओं में मेरे जीवन-चरित प्रकाशित हुए जिनको पढ़कर मुझे उनके एडीटरों की आविष्कार- बुद्धि का कायल होना पड़ा। न तो मैं किसी रईस का बेटा था और न मैंने रईसी को मसनद छोड़कर फकीरी अख्तियार की थी। उनकी कल्पना वास्तविकता पर छा गयी थी। मेरे मित्रों में एक साहब ने, जिन्हें मुझसे आत्मीयता का दावा था, मुझे पीने-पिलाने का प्रेमी बना दिया था। वह जब कभी मुझसे मिलते, उन्हें मेरी आँखें