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अमृत १८९

जरूरत न थी कि वहाँ किसी क़दर सरगर्मी से मेरा इन्तज़ार किया जाता था।मेरे क़दमों की पहचानी हुई आहट पाते ही उसका चेहरा कमल की तरह खिल जाता था और आँखों से कामना की किरणें निकलने लगती थीं। यहाँ छ: महीने गुजर गये। इस ज़माने को मेरी ज़िन्दगी की बहार समझना चाहिए। मुझे वह दिन भी याद है जब मैं आरजुओं और हसरतों के ग़म में आजाद था मगर दरिया की शान्तिपूर्ण रवानी में थिरकती हुई लहरों की वहार कहाँ। अब अगर मुहब्बत का दर्द था तो उसका प्राणदायी मजा भी था। अगर आरजुओं की घुलावट थी तो उनकी उमंग भी थी। आह, मेरी यह प्यासी आँखें उस रूप के स्रोत से किसी तरह तृप्त न होतीं। जब मैं अपनी नशे में डूबी हुई आँखों से उसे देखता तो मुझे एक आत्मिक तरावट-सी महसूस होती। मैं उसके दीदार के नशे से वेसुध सा हो जाता और मेरी रचना-शक्ति का तो कुछ हद-हिसाब न था। ऐसा मालूम होता था कि जैसे दिल में मीठे भावों का सोता खुल गया था। अपनी कवित्व शक्ति पर खुद अचम्भा होता था। कलम हाथ में ली और रचना का सोता-या बह निकला। 'नैरंग' में ऊँची कल्पनाएँ न हों, बड़ी गूढ बातें न हों, मगर उसका एक-एक शेर प्रवाह और रस, गर्मी और घुलावट की दाद दे रहा है। यह उस दीपक का वरदान है, जो अब मेरे दिल में जल गया था और रोशनी दे रहा था। यह उस फूल की महक थी जो मेरे दिल में खिला हुआ था। मुहब्बत रूह की खूराक है। यह वह अमृत की बूँद है जो मरे हुए भावों को ज़िन्दा कर देती है। मुहब्बत आत्मिक वरदान है। यह जिन्दगी की सबसे पाक, सबसे ऊँची, सबसे मुबारक बरकत है। यही अक्सीर थी जिसकी अनजाने ही मुझे तलाश थी। वह रात कभी न भूलेगी जब आयशा दुल्हन बनी हुई मेरे घर में आयी ! 'नैरंग' उसी मुबारक ज़िन्दगी की यादगार हैं।'दुनियाए हुस्न' एक कली थी, 'नरंग' खिला हुआ फूल है और उस कली को खिलाने वाली कौन-सी चीज़ है ? वही जिसकी मुझे अनजाने ही तलाश थी और जिसे मैं अब पा गया था।

-उर्दू 'प्रेम पचीसी' से