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अपनी करनी
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हुजूर माई-बाप हैं, आपसे क्या पर्दा करूं, उसे अब अमीरों के साथ रहना अच्छा लगता है और आजकल के रईसों और अमीरों को क्या कहूं, दीनवन्धु सब जानते हैं।

महाराजा साहब ने जरा देर गौर करके पूछा-क्या उसका किसी सरकारी नौकर से सम्बन्ध है? दुर्जन ने सर झुकाकर कहा- हुजूर। महाराजा साहब-वह कौन आदमी है,तुम्हें उसे बतलाना होगा।

दुर्जन-महाराज जब पूछेंगे बता दूंगा, सांच को आंच क्या।

मैंने तो समझा था कि शायद इसी वक्त सारा पर्दाफाश हुआ जाता है लेकिन महाराजा साहब ने अपने दरबार के किसी मुलाजिम की इज्जत को इस तरह मिट्टी में मिलाना ठीक नहीं समझा। वे वहां से टहलते हुए मोटर पर बैठकर महल की तरफ चले।

इस मनहूस वाकये के एक हफ्ते बाद एक रोज़ मैं दरबार लौटा तो मुझे अपने घर में से एक बूढ़ी औरत बाहर निकलती हुई दिखायी दी। उसे देखकर मैं ठिठका। उसके चेहरे पर वह बनावटी भोलापन था जो कुटनियों के चेहरे की खास बात है। मैंने उसे डांटकर पूछा-तू कौन है, यहां क्यों आई है ?

बुढ़िया ने दोनों हाथ उठाकर मेरी बलाएं ली और बोली-बेटा नाराज न हो गरीब भिखारी हूं, मालकिन का सुहाग भरपूर रहे, उसे जैसा सुनती थी वैसा ही पाया। यह कहकर उसने जल्दी से कदम उठाए और बाहर चली गई। मेरे गुस्से का पारा चढ़ा; मैंने घर में जाकर पूछा- यह कौन औरत आयी थी?

मेरी बीवी ने सर झुकाये हुए धीरे से जवाब दिया-क्या जानूं, कोई भिखारिन थी।

मैंने कहा-भिखारिनों की सूरत ऐसी नहीं हुआ करती, यह तो मुझे कुटनी-सी नजर आती है। साफ़-साफ़ बताओ उसके यहां आने का क्या मतलब था? लेकिन बजाय इसके कि इन संदेहभरी बातों को सुनकर मेरी बीवी गर्व से सिर उठाये और मेरी तरफ उपेक्षा भरी आंखों से देखकर अपनी साफ़दिली का सुबूत दे, उसने सर झुकाये हुए जवाब दिया-मैं उसके पेट में थोड़े ही बैठी थी। भीख मांगने आयी थी, भीख दे दी, किसी के दिल का हाल कोई क्या जाने ! उसके लहजे और अंदाज' से पता चलता था कि वह जितना जबान से कहती है उससे बहुत ज्यादा उसके दिल में है। झूठा आरोप लगाने की कला में वह अभी