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१८६ गुप्त धन


बिलकुल कच्ची थी वर्ना तिरिया चरित्तर की थाह किसे मिलती है । मैं देख रहा था कि उसके हाथ-पांव थरथरा रहे हैं। मैंने झपटकर उसका हाथ पकड़ा और उसके सर को ऊपर उठाकर बड़े गम्भीर क्रोध से बोला-इन्दु, तुम जानती हो कि मुझे तुम्हारा कितना एतबार है लेकिन अगर तुमने इसी वक्त सारी घटना सच सच न बतला दी तो मैं नहीं कह सकता कि इसका नतीजा क्या होगा। तुम्हारा ढंग बतलाता है कि कुछ-न-कुछ दाल में काला जरूर है। यह खूब समझ रखो कि मैं अपनी इज्जत को तुम्हारी और अपनी जानों से ज्यादा अजीज समझता हूँ। मेरे लिए यह डूब मरने की जगह है कि मैं अपनी बीवी से इस तरह की बातें करूं, उसकी ओर से मेरे दिल में संदेह पैदा हो। मुझे अब ज्यादा सब्र की गुंजाइश नहीं है।बोलो क्या बात है ?

इन्दुमती मेरे पैरों पर गिर पड़ी और रोकर बोली-मेरा कुसूर माफ़ कर दो।

मैंने गरजकर कहा-वह कौन सा कुसूर है ? इन्दुमती ने संभलकर जवाब दिया-तुम अपने दिल में इस वक्त जो खयाल कर रहे हो उसे एक पल के लिए भी वहां न रहने दो, वर्ना समझ लो कि आज ही इस ज़िन्दगी का खात्मा है। मुझे नहीं मालूम था कि तुम मेरी तरफ से ऐसे खयाल रखते हो। मेरा परमात्मा जानता है कि तुमने मेरे ऊपर जो जुल्म किये हैं उन्हें मैंने किस तरह झेला है और अब भी सब कुछ झेलने के लिए तैयार हूं। मेरा सर तुम्हारे पैरों पर है, जिस तरह रखोगे, रहूंगी। लेकिन आज मुझे मालूम हुआ कि जैसे तुम खुद हो वैसा ही दूसरों को समझते हो । मुझसे भूल अवश्य हुई है लेकिन उस भूल की यह सजा नहीं कि तुम मुझपर ऐसे संदेह करो। मैंने उस औरत की बातों में आकर अपने घर का सारा कच्चा चिट्ठा बयान कर दिया। मैं समझती थी कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए लेकिन कुछ तो उस औरत की हमदर्दी और कुछ मेरे अन्दर सुलगती हुई आग ने मुझसे यह भूल करवाई और इसके लिए तुम जो सजा दो वह मेरे सर आंखों पर।

मेरा गुस्सा जरा धीमा हुआ। बोला-तुमने उससे क्या कहा ? इन्दुमती ने जवाब दिया-घर का जो कुछ हाल है, तुम्हारी बेवफ़ाई, तुम्हारी लापरवाही, तुम्हारा घर की जरूरतों की फ़िक्र न रखना। अपनी बेवकूफ़ी को क्या कहूं, मैंने उससे यहां तक कह दिया कि इधर तीन महीने से उन्होंने घर के लिए कुछ खर्च भी नहीं दिया और इसकी चोट मेरे गहनों पर पड़ी। तुम्हें शायद मालूम