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१९८ गुप्त धन


अब अपने बाल-बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी से भी अपने को मुक्त समझ लिया है। अगर तुम्हारा यही ढंग रहा तो यक़ीनन् वसीक़ादारों का एक पुराना खानदान मिट जायगा। इसलिए आज से हमने तुम्हारा नाम वसीकादारों की फ़ेहरिस्त से खारिज कर दिया और तुम्हारी जगह तुम्हारी बीवी का नाम दर्ज किया गया। वह अपने लड़कों को पालने-पोसने की जिम्मेदार है। तुम्हारा नाम रियासत के मालियों की फ़ेहरिस्त में लिखा जायगा, तुमने अपने को इसी के योग्य सिद्ध किया है और मुझे उम्मीद है कि यह तबादला तुम्हें नागवार न होगा। बस जाओ और मुमकिन हो तो अपने किये पर पछताओ।

मुझे कुछ कहने का साहस न हुआ। मैंने बहुत धैर्यपूर्वक अपने किस्मत का यह फैसला सुना और घर की तरफ़ चला। लेकिन दो ही चार क़दम चला था कि अचानक खयाल आया किसके घर जा रहे हो, तुम्हारा घर अब कहां है ! मैं उलटे क़दम लौटा। जिस घर का मैं राजा था वहां दूसरों का आश्रित बनकर मुझसे नहीं रहा जायगा और रहा भी जाये तो मुझे रहना नहीं चाहिए। मेरा आचरण निश्चय ही अनुचित था लेकिन मेरी नैतिक संवेदना अभी इतनी भोंथी न हुई थी। मैंने पक्का इरादा कर लिया कि इसी वक्त इस शहर से भाग जाना मुनासिब है वर्ना बात फैलते ही हमदर्दों और बुरा चेतनेवालों का एक जमघट हालचाल पूछने के लिए आ जायगा, दूसरों की सूखी हमदर्दियां सुननी पड़ेंगी जिनके पर्दे में खुशी झलकती होगी। एक बार, सिर्फ एक बार, मुझे फूलमती का खयाल आया। उसके कारण यह सब दुर्गत हो रही है, उससे तो मिल ही लूं। मगर दिल ने रोका, क्या एक वैभवशाली आदमी की जो इज्जत होती थी वह अब मुझे हासिल हो सकती है ? हरगिज़ नहीं। रूप की मण्डी में वफ़ा और मुहब्बत के मुक़ाबिले में रुपया-पैसा ज्यादा कीमती चीज है। मुमकिन है इस वक्त मुझ पर तरस खाकर या क्षणिक आवेश में आकर फूलमती मेरे साथ चलने पर आमादा हो जाय लेकिन उसे लेकर कहां जाऊंगा, पावों में बेड़ियां डालकर चलना तो और भी मुश्किल है। इस तरह सोच-विचारकर मैंने बम्बई की राह ली और अब दो साल से एक मिल में नौकर हूं,तनख्वाह सिर्फ इतनी है कि ज्यों-त्यों ज़िन्दगी का सिलसिला चलता रहे लेकिन ईश्वर को धन्यवाद देता हूं और इसी को यथेष्ट समझता हूं। मैं एक बार गुप्त रूप से अपने घर गया था। फूलमती ने एक दूसरे रईस से रूप का सौदा कर लिया है,