पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/२१२

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गैरत की कटार

कितनी अफ़सोसनाक, कितनी दर्दभरी बात है कि वही औरत जो कभी हमारे पहलू में बसती थी उसी के पहलू में चुभने के लिए हमारा तेज़ खंजर बेचैन हो रहा है। जिसकी आँखें हमारे लिए अमृत के छलकते हुए प्याले थीं वही आँखें हमारे दिल में आग और तूफान पैदा करें! रूप उसी वक्त तक राहत और खुशी देता है जब तक उसके भीतर एक रूहानी नेमत होती है और जब तक उसके अन्दर औरत की वफ़ा की रूह हरकत कर रही हो वर्ना वह एक तकलीफ़ देनेवाली चीज़ है, जहर और बदबू से भरी हुई,इसी काबिल कि वह हमारी निगाहों से दूर रहे और पंजे और नाखून का शिकार बने। एक जमाना वह था कि नईमा हैदर की आरजुओं की देवी थी, यह समझना मुश्किल था कि कौन तलबगार है और कौन उस तलब को पूरा करने वाला। एक तरफ पूरी-पूरी दिलजोई थी, दूसरी तरफ पूरी-पूरी रज़ा। तब तक़दीर ने पासा पलटा। गुलो-बुलबुल में सुबह की हवा की शरारतें शुरू हुई। शाम का वक्त था। आसमान पर लाली छायी हुई थी। नईमा उमंग और ताजगी और शौक से उमड़ी हुई कोठे पर आयी। शफ़क़ की तरह उसका चेहरा भी उस वक्त खिला हुआ था। ऐन उसी वक्त वहाँ का सूबेदार नासिर अपने हवा की तरह तेज घोड़े पर सवार उधर से निकला । ऊपर निगाह उठी तो हुस्न का करिश्मा नजर आया कि जैसे चाँद शफ़क़ के हौज में नहाकर निकला है । तेज़ निगाह जिगर के पार हुई। कलेजा थामकर रह गया। अपने महल को लौटा, अधमरा, टूटा हुआ। मुसाहबों ने हकीम की तलाश की और तब राह-रस्म पैदा हुई। फिर इश्क़ की दुश्वार मंजिलें तय हुईं। वफ़ा और हया ने बहुत वेरुखी दिखायी। मगर मुहब्बत के शिकवे और इश्क की कुफ्र तोड़नेवाली धमकियाँ आखिर जीतीं। अस्मत का खज़ाना लुट गया। उसके बाद वही हुआ जो हो सकता था। एक तरफ से बदगुमानी,दूसरी तरफ से बनावट और मक्कारी। मनमुटाव की नौबत आयी, फिर एक-दूसरे के दिल को चोट पहुँचाना शुरू हुआ। यहाँ तक कि दिलों में मैल पड़ गयी। एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गये। नईमा ने नासिर की मुहब्बत की गोद में पनाह ली और आज एक महीने की बेचैन इन्तजारी के बाद हैदर अपने जज़्बात के साथ