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गुप्त धन
 

हैदर ने तेज़ कटार पहलू से निकाली और दबे पाँव नईमा की तरफ़ आया लेकिन उसके हाथ न उठ सके। जिसके साथ उम्र भर जिन्दगी की सैर की उसकी गर्दन पर छुरी चलाते हुए उसका हृदय द्रवित हो गया। उसकी आँखें भीग गयीं,दिल में हसरतभरी यादगारों का एक तूफान-सा आ गया। तक़दीर की क्या खूबी है कि जिस प्रेम का आरम्भ ऐसा खुशी से भरपूर हो उसका अन्त इतना पीड़ाजनक हो। उसके पैर थरथराने लगे। लेकिन स्वाभिमान ने ललकारा, दीवार पर लटकी हुई तस्वीरें उसकी इस कमज़ोरी पर मुस्करायीं।

मगर कमजोर इरादा हमेशा सवाल और दलील की आड़ लिया करता है। हैदर के दिल में खयाल पैदा हुआ, क्या इस मुहब्बत के बाग़ को उजाड़ने का इल्ज़ाम मेरे ऊपर नहीं है ? जिस वक्त बदगुमानियों के अँखुए निकले, अगर मैंने तानों और धिक्कारों के बजाय मुहब्बत से काम लिया होता तो आज यह दिन न आता। मेरे ही जुल्मों ने मुहब्बत और वफ़ा की जड़ काटी। औरत कमजोर होती है,किसी सहारे के बगैर नहीं रह सकती। जिस औरत ने मुहब्बत के मजे उठाये हों,और उल्फ़त की नाजबरदारियाँ देखी हों वह तानों और जिल्लतों की आँच क्या सह सकती है ? लेकिन फिर गैरत ने उकसाया, कि जैसे वह धुंधला चिराग़ भी उसकी कमजोरियों पर हँसने लगा।

स्वाभिमान और तर्क में सवाल-जवाब हो रहा था कि अचानक नईमा ने करवट बदली और अंगड़ाई ली। हैदर ने फौरन तलवार उठायी, जान के खतरे में आगा- पीछा कहाँ। दिल ने फैसला कर लिया, तलवार अपना काम करनेवाली ही थी कि नईमा ने आँखें खोल दीं। मौत की कटार सिर पर नज़र आयी। वह घबराकर उठ बैठी। हैदर को देखा, परिस्थिति समझ में आ गयी। बोली- हैदर!

हैदर ने अपनी झेंप को गुस्से के पर्दे में छिपाकर कहा- हाँ, मैं हूँ हैदर! नईमा सिर झुकाकर हसरतभरे ढंग से बोली-तुम्हारे हाथों में यह चमकती हुई तलवार देखकर मेरा कलेजा थरथरा रहा है। तुम्हीं ने मुझे नाज़बरदारियों का आदी बना दिया है। ज़रा देर के लिए इस कटार को मेरी आँखों से छिपा लो।मैं जानती हूँ कि तुम मेरे खून के प्यासे हो, लेकिन मुझे न मालूम था कि तुम इतने बेरहम और संगदिल हो। मैंने तुमसे दग़ा की है, तुम्हारी खतावार हूँ लेकिन हैदर