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घमण्ड का पुतला
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चाँद के चमकते हुए गीत से जिस तरह लहरें झूम रही थीं, उसी तरह मीठी चिन्ताओं से दिल उमड़ा आता था।

मुझे ऊँचे कगार पर एक पेड़ के नीचे कुछ रोशनी दिखायी दी। मैं ऊपर चढ़ा। वहाँ बरगद की घनी छाया में एक धूनी जल रही थी। उसके सामने एक साधू पैर फैलाये बरगद की एक मोटी जटा के सहारे लेटे हुए थे। उनका चमकता हुआ चेहरा आग की चमक को लजाता था। नीले तालाब में कमल खिला हुआ था।

उनके पैरों के पास एक दूसरा आदमी बैठा हुआ था। उसकी पीठ मेरी तरफ थी। वह उस साधू के पैरों पर अपना सिर रखे हुए था, पैरों को चूमता था और आँखों से लगाता था। साधू अपने दोनों हाथ उसके सिर पर रखे थे कि जैसे वासना धैर्य और संतोष के आँचल में आश्रय ढूँढ़ रही हो। भोला लड़का माँ-बाप की गोद में आ बैठा था।

एकाएक वह झुका हुआ सर उठा और मेरी निगाह उसके चेहरे पर पड़ी। मुझे सकता-सा हो गया। यह कुंअर सज्जन सिंह थे। वह सर जो झुकना न जानता था, इस वक्त जमीन चूम रहा था।

वह माथा जो एक ऊँचे मंसबदार के सामने न झुका, जो एक प्रतापी वैभवशाली महाराजा के सामने न झुका, जो एक बड़े देशप्रेमी कवि और दार्शनिक के सामने न झुका, इस वक्त एक साधू के क़दमों पर गिरा हुआ था। घमण्ड, वैराग्य के सामने सिर झुकाये खड़ा था।

मेरे दिल में इस दृश्य से भक्ति का एक आवेग पैदा हुआ। आँखों के सामने से एक परदा-सा हटा और कुंअर सज्जन सिंह का आत्मिक स्तर दिखायी दिया। मैं कुंअर साहब की तरफ चला। उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर अपने पास बिठाना चाहा लेकिन मैं उनके पैरों से लिपट गया और बोला—मेरे दोस्त, मैं आज तक तुम्हारी आत्मा के बड़प्पन से बिलकुल बेखबर था। आज तुमने मेरे हृदय पर उसको अंकित कर दिया कि वैभव और प्रताप, कमाल और शोहरत यह सब घटिया चीजें हैं,भौतिक चीजें हैं। वासनाओं में लिपटे हुए लोग इस योग्य नहीं कि हम उनके सामने भक्ति से सिर झुकायें, वैराग्य और परमात्मा से दिल लगाना ही वे महान् गुण हैं जिनकी ड्योढ़ी पर बड़े-बड़े वैभवशाली और प्रतापी लोगों के सिर भी झुक जाते हैं। यही वह ताक़त है जो वैभव और प्रताप को, घमण्ड की शराब के मतवालों को और जड़ाऊ मुकुट को अपने पैरों पर गिरा सकती है। ऐ तपस्या के एकान्त में बैठने-