पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/२२७

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विजय

शहजादा मसरूर की शादी मलका मखमूर से हुई और दोनों आराम से जिन्दगी बसर करने लगे। मसरूर ढोर चराता, खेत जोतता, मखमूर खाना पकाती और चरखा चलाती। दोनों तालाब के किनारे बैठे हुए मछलियों का तैरना देखते;लहरों से खेलते, बागीचे में जाकर चिड़ियों के चहचहे सुनते और फूलों के हार बनाते। न कोई फिक्र थी, न कोई चिन्ता।

लेकिन बहुत दिन न गुजरने पाये थे कि उनके जीवन में एक परिवर्तन आया। दरबार के सदस्यों में बुलहवस खाँ नाम का एक फ़सादी आदमी था। शाह मसरूर ने उसे नजरबन्द कर रक्खा था। वह धीरे-धीरे मलका मखमूर के मिजाज में इतना दाखिल हो गया कि मलका उसके मशविरे के बगैर कोई काम न करती। उसने मलका के लिए एक हवाई जहाज़ बनाया जो महज़ इशारे से चलता था। एक सेकेण्ड में हजारों मील रोज जाता और देखते-देखते ऊपर की दुनिया की खबर लाता। मलका उस जहाज पर बैठकर योरोप और अमरीका की सैर करती। बुलहवस उससे कहता, साम्राज्य को फैलाना बादशाहों का पहला कर्तव्य है। इस लम्बी-चौड़ी दुनिया पर कब्जा कीजिए, व्यापार के साधन बढ़ाइये, छिपी हुई दौलत निकालिये,फौजें खड़ी कीजिए, उनके लिए अस्त्र-शस्त्र जुटाइए। दुनिया हौसलामन्दों के लिए है। उन्हीं के कारनामे, उन्हीं की जीतें याद की जाती हैं। मलका उसकी बातों को खूब कान लगाकर सुनती। उसके दिल में हौसले का जोश उमड़ने लगता । यहाँ तक कि अपना सरल सन्तोषी जीवन उसे रूखा-फीका मालूम होने लगा।


मगर शाह मसरूर संतोष का पुतला था। उसकी ज़िन्दगी के वह मुबारक लमहे होते थे जब वह एकांत के कुंज में चुपचाप बैठकर जीवन और उसके कारणों पर विचार करता और उसकी विराटता और आश्चर्यों को देखकर श्रद्धा के भाव से चीख उठता-आह ! मेरी हस्ती कितनी नाचीज़ है ! उसे मलका के मंसूबों और हौसलों से ज़रा भी दिलचस्पी न थी। नतीजा यह हुआ कि आपस के प्यार और सच्चाई की जगह संदेह पैदा हो गये। दरबारियों में गिरोह बनने लगे। जीवन का संतोष विदा हो गया। मसरूर को इन सब परेशानियों के लिए, जो उसकी सभ्यता के