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विजय
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उसने कहा-मैं वही गाने सुनूँगी, वही राग, वही अलाप, वह लुभानेवाले गीत।हाय वह आवाजें कहाँ गयीं। कुछ परवाह नहीं, मेरा राज जाये, पाट जाये, मैं वही राग सुनूंगी।

सिपाहियों का नशा भी टूटा। उन्होंने उसके स्वर में स्वर मिलाकर कहा-हम वही गीत सुनेंगे, वही प्यारे-प्यारे मोहक राग! बला से हम गिरफ्तार होंगे,गुलामी की बेड़ियाँ पहनेंगे, आजादी से हाथ धोयेंगे पर वही राग, वहीं तराने, वही तानें, वही धुनें।

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सूबेदार लोचनदास को जब कर्ण सिंह की विजय का हाल मालूम हुआ तो उसने भी विद्रोह करने की ठानी। अपनी फौज लेकर राजधानी पर चढ़ दौड़ा। मलका ने अबकी जान-तोड़ मुकाबला करने की ठानी। सिपाहियों को खूब ललकारा और उन्हें लोचनदास के मुकाबले में खड़ा किया मगर बाहरी हमलावर फौज! न कहीं सवार, न कहीं प्यादे, न तोप, न बन्दूक, न हरवे, न हथियार, सिपाहियों की जगह सुन्दर नर्तकियों के गोल थे और थियेटर के ऐक्टर। सवारों की जगह भौड़ों और बहुरूपियों के ग़ोल। मोर्चों की जगह तीतरों और बटेरों के जोड़ छूटे हुए थे तो बन्दूक की जगह सर्कस और बाइसकोप के खेमे पड़े थे। कहीं हीरे-जवाहरात अपनी आबताब दिखा रहे थे, कहीं तरह-तरह के चरिन्दों-परिन्दों की नुमाइश खुली हुई थी।मैदान के एक हिस्से में धरती की अजीब-अजीब चीजें, झरने और बर्फिस्तानी चोटियाँ और बर्फ के पहाड़, पेरिस का बाजार, लन्दन का एक्स्चेंज या सटन की मंडियाँ,अफ्रीका के जंगल, सहारा के रेगिस्तान, जापान की गुलकारियाँ, चीन के दरियाई शहर, दक्षिण अमरीका के आदमखोर, काफ़ की परियाँ, लैपलैण्ड के सुमूरपोश इन्सान और ऐसे सैकड़ों विचित्र और आकर्षक दृश्य चलते-फिरते दिखायी पड़ते थे। मलका की फौज यह नज़्ज़ारा देखते ही बेसुध होकर उसकी तरफ दौड़ी। किसी को सर-पैर का खयाल न रहा। लोगों ने बन्दूकें फेंक दी, तलवारें और किरचें उतार फेंकी और बेतहाशा इन दृश्यों के चारों तरफ जमा हो गये। कोई नाचनेवालियों की मीठी अदाओं और नाजुक चलन पर दिल दे बैठा, कोई थियेटर के तमाशों पर रीझा। कुछ लोग तीतरों और बटेरों के जोड़ देखने लगे और सब के सब चित्रलिखित से मन्त्रमुग्ध खड़े रह गये। मलका अपने हवाई जहाज़ पर बैठी कभी थिये- टर की तरफ जाती कभी सर्कस की तरफ दौड़ती, यहाँ तक कि वह भी बेहोश हो गयी।