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शेख मखमूर
११
 

अपनी दुगनी उमर के बच्चों से बढ़कर था। सुबह होते ही गरीब रिन्दा बच्चे का वनाव-सिंगार करके और उसे नाश्ता खिलाकर अपने काम-धन्धों में लग जाती थी और शाह साहब बच्चे की उँगली पकड़कर उसे आवादी से दूर चट्टान पर ले जाते। वहाँ कभी उसे पढ़ाते, कभी हथियार चलाने की मश्क कराते और कभी उसे शाही कायदे समझाते। बच्चा था तो कमसिन, मगर इन बातों में ऐसा जो लगाता और ऐसे चाव से लगा रहता गोया उसे अपने वंश का हाल मालूम है। मिज़ाज भी बादशाहों जैसा था। गाँव का एक-एक लड़का उसके हुक्म का फ़रमावरदार था। माँ उस पर गर्व करती, बाप फूला न समाता और सारे गाँव के लोग समझते कि यह शाह साहब के जप-तप का असर है।

बच्चा मसऊद देखते-देखते एक सात साल का नौजवान शहजादा हो गया। देखकर देखनेवाले के दिल को एक नशा-सा होता था। एक रोज शाम का वक्त था, शाह साहब अकेले सैर करने गये और जब लौटे तो उनके सर पर एक जड़ाऊ ताज शोभा दे रहा था। रिन्दा उनकी यह हुलिया देखकर सहम गयी और मुँह से कुछ बोल न सकी। तब उन्होंने नौजवान मसऊद को गले से लगाया, उसी वक्त उसे नहलाया-धुलाया और एक चट्टान के तख्त पर बैठाकर दर्द-भरे लहजे में बोले-मसऊद, मैं आज तुमसे रुखसत होता हूँ और तुम्हारी अमानत तुम्हें सौंपता हूँ। यह उसी मुल्के जन्नतनिशाँ का ताज है। कोई वह ज़माना था, कि यह ताज तुम्हारे बदनसीब बाप के सर पर जेब देता था, अब वह तुम्हें मुबारक हो। रिन्दा ! प्यारी बीवी ! तेरा बदकिस्मत शौहर किसी ज़माने में इस मुल्क का बादशाह था और अब तू उसकी मलिका है। मैंने यह राज़ तुमसे अब तक छिपाया था, मगर हमारे अलग होने का वक्त बहुत पास है ! अब छिपाकर क्या करूँ। मसऊद, तुम अभी बच्चे हो, मगर दिलेर और समझदार हो। मूझे यक़ीन है कि तुम अपने बूढ़े बाप की आखिरी वसीयत पर ध्यान दोगे और उस पर अमल करने की कोशिश करोगे। यह मुल्क तुम्हारा है, यह ताज तुम्हारा है और यह रिआया तुम्हारी है। तुम इन्हें अपने कब्जे में लाने की मरते दम तक कोशिश करते रहना और अगर तुम्हारी तमाम कोशिशें नाकाम हो जायें और तुम्हें भी यही बेसरोसामानी की मौत नसीब हो तो यही वसीयत तुम अपने बेटे से कर देना और यह ताज जो उसकी अमानत होगी उसके सुपुर्द करना। मुझे तुमसे और कुछ नहीं कहना है, खुदा तुम दोनों को खुशोखुर्रम रक्खे और तुम्हें मुराद को पहुँचाये।

यह कहते-कहते शाह साहब की आँखें वन्द हो गयीं। रिन्दा दौड़कर उनके