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गुप्त धन
 

वह अपना सुर अलापने लगे और मीठी-मीठी बातें करने लगे, कानों पर हाथ रख लो,देखो, अदृश्य के पर्दे से फिर क्या चीज़ सामने आती है।

मलका कर्ण सिंह के दरबार में पहुँची। उसे देखते ही चारों तरफ से ध्रुपद और तिल्लाने के वार होने लगे। पियानो वजने लगे। मलका ने दोनों कान बन्द कर लिये। कर्ण सिंह के दरबार में आग का शोला उठने लगा। सारे दरबारी जलने लगे।कर्ण सिंह दौड़ा हुआ आया और बड़े विनयपूर्वक मलका के पैरों पर गिरकर बोला- हुजूर,अपने इस हमेशा के गुलाम पर रहम करें। कानों पर से हाथ हटा लें, वर्ना इस गरीब की जान पर बन जायगी। अब कभी हुजूर की शान में यह गुस्ताखी न होगी।

मलका ने कहा-अच्छा, जा तेरी जाँ-बख्शी की। अब कभी बगावत न करना वर्ना जान से हाथ धोयेगा।

कर्णसिंह ने संतोख सिंह की तरफ प्रलय की आंखों से देखकर सिर्फ इतना कहा-'जालिम, तुझे मौत भी नहीं आयी' और बेतहाशा गिरता-पड़ता भागा । संतोख सिंह ने मलका से कहा- देखा तुमने, इनको मारना कितना आसान था? अब चलो लोचनदास के पास।ज्योंही वह अपने करिश्मे दिखाने लगे, दोनों आँखें बन्द कर लेना।

मलका लोचनदास के दरबार में पहुँची। उसे देखते ही लोचन ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना शुरू किया। ड्रामे होने लगे, नर्तकों ने थिरकना शुरू किया। लालो-जमुर्रद की कश्तियां सामने आने लगी लेकिन मलका ने दोनों आँखें बन्द कर लीं।

आन की आन में वह ड्रामे और सर्कस और नाचनेवालों के गिरोह खाक में मिल गये। लोचनदास के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी, निराशापूर्ण धैर्य के साथ चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगा-यह तमाशा देखो, यह पेरिस के क़हवेखाने, यह मिस एलिन का नाच है। देखो, अंग्रेज़ रईस उस पर कितनी उदारता से सोने और हीरे- जवाहरात निछावर कर रहे हैं। जिसने यह सैर-तमाशे न देखे उसकी ज़िन्दगी मौत से बदतर । लेकिन मलका ने आँखें न खोली ।

तब लोचनदास बदहवास और घबराया हुआ, वेद के दरख्त की तरह काँपता हुआ मलका के सामने आ खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर बोला-हुजूर, आँखें खोलें। अपने इस गुलाम पर रहम करें, नहीं तो मेरी जान पर बन जायगी।गुलाम की गुस्ताखियाँ माफ़ फरमायें । अब यह बेअदबी न होगी ।