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विजय
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मलका ने कहा- अच्छा जा, तेरी जाँबख्शी की लेकिन खबरदार अब सर न उठाना नहीं तो जहन्नुम रसीद कर दूंगी।

लोचनदास यह सुनते ही गिरता-पड़ता जान लेकर भागा। पीछे फिरकर भी न देखा। संतोख सिंह ने मलका से कहा-अब चलो मिर्जा शमीम और रसराज के पास । यहाँ एक हाथ से नाक बन्द कर लेना और दूसरे हाथ से खानों के तश्त को ज़मीन पर गिरा देना।

मलका रसराज और शमीम के दरबार में पहुँची। उन्होंने जो संतोख को मलका के साथ देखा तो होश उड़ गये। मिर्जा शमीम ने कस्तूरी और केसर की लपटें उड़ाना शुरू की। रसराज स्वादिष्ट खानों के तश्त सजा-सजाकर मलका के सामने लाने लगा,और उनकी तारीफ करने लगा-यह पुर्तगाल की तीन आँच दी हुई शराब है, इसे पिये तो बुड्ढा जवान हो जाय । यह फ्रांस का शैम्पेन है, इसे पिये तो मुर्दा जिन्दा हो जाय। यह मथुरा के पेड़े हैं, इन्हें खाये तो स्वर्ग की नेमतों को जाय।

लेकिन मलका ने एक हाथ से नाक बन्द कर ली और दूसरे हाथ से उन तश्तों को जमीन पर गिरा दिया और बोतलों को ठोकरें मार-मारकर चूर कर दिया।ज्यों-ज्यों उसकी ठोकरें पड़ती थीं, दरबार के दरबारी चीख -चीखकर भागते थे।आखिर मिर्जा शमीम और रसराज दोनों परीशान और वेहाल, सर से खून जारी, अंग-अंग टूटा हुआ, आकर मलका के सामने खड़े हो गये और गिड़गिड़ाकर बोले-हुजूर, गुलामों पर रहम करें। हुजूर की शान में जो गुस्ताखियाँ हुई हैं उन्हें मुआफ फरमायें, अब फिर ऐसी बेअदबी न होगी।

मलका ने कहा-रसराज को मैं जान से मारना चाहती हूँ। उसके कारण मुझे जलील होना पड़ा।

लेकिन संतोख सिंह ने मना किया-नहीं, इसे जान से न मारिये। इस तरह का सेवक मिलना कठिन है। यह आपके सव सूबेदार अपने काम में यकता हैं। सिर्फ इन्हें काबू में रखने की जरूरत है।

मलका ने कहा-अच्छा जाओ, तुम दोनों की भी जाँ-बख्शी की लेकिन खबरदार अब कभी उपद्रव मत खड़ा करना वर्ना तुम जानोगे।

दोनों गिरते-पड़ते भागे और दम के दम में नजरों से ओझल हो गये।

मलका की रिआया और फौज ने भेंटें दीं, घर-घर शादियाने बजने लगे। चारों बागी सूबेदार शहरपनाह के पास छापा मारने की घात में बैठ गये लेकिन संतोख